Book Title: Chandravyakaranam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 8
________________ [ 2 ] कातंत्र को ऐन्द्र-व्याकरण का ग्रंथ' कहा जाता है जिसको विनाश करने का भागी पाणिनि बताया जाता है / कथासरित्सागर के अनुसार ऐन्द्र-व्याकरण कात्यायन का था और इसको नष्ट करने वाला पाणिनि था। कुछ हेर-फेर के साथ यही बात बृहत्कथामंजरी में भी मिलती है; कथा संक्षेप में यह हैप्राचार्य वर्ष के अनेक शिष्यों में दो शिष्य थे कात्यायन और पाणिनि / पाणिनि जडबुद्धि था और गुरुजनों की सेवा-शुश्रूषा में भी कमी करता था। गुरुपत्नी से निकाले जाने पर वह खिन्न होकर हिमालय चला गया जहां उसके घोर तप से प्रसन्न होकर शिव ने उसे 'नवव्याकरण' दिया जिसको प्राप्त करके उसने कात्यायन को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा / जब कात्यायन ने पाणिनि को शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया, तो नभ में स्थित शंभु ने घोर हुंकार किया जिसके फलस्वरूप कात्यायन का सारा ऐन्द्र-व्याकरण भूतल से नष्ट हो गया / लगभग इसी से मिलती-जुलती कथा हुयेन-सांग ने भी सातवीं शताब्दी में प्राकर भारतवर्ष में सुनी' / कात्यायन-सूत्रम् अथवा पूर्वपाणिनीयम् नाम से एक 24 सूत्रों वाली.पुस्तक बड़ौदा में पंजीवाराम कालिदास के संपादन में प्रकाशित हुई; इसमें और कातन्त्र में एक समानता यह है कि यह भी 'प्रोम् नमः सिद्धम्' से प्रारंभ होता है / परन्तु दोनों के आकार में प्राकाश-पाताल का अन्तर है। फिर भी 'प्रोम् नमः सिद्धम्' की समानता दोनों ग्रंथों की एक ही परंपरा सिद्ध करती है। क्या बर्नेल के अनुसार कातंत्र की भांति इसे भी 'ऐन्द्र' परंपरा में माना जा 1. बर्नेल, दि ऐन्द्र स्कूल प्राव संस्कृत ग्रामर, प० 45-53 / / 2. भय कालेन वर्षस्य शिष्यवर्गो महानभूत् / तकः पाणिनिर्नामा - जहबुद्धितरोऽभवत् / / स शुश्रूषापरिक्लिष्टः प्रेषितो वर्षभार्ययोः / अगच्छत् तपसे खिन्नो विद्याकामो हिमालयम् // तत्र तीव्रण तपसा तोषितात् इन्दुशेखरात् / सर्वविद्यामुखं तेन प्राप्त व्याकरणं नवम् / / ततश्चाऽगत्य मामेव वादायाह्वयते स्म सः। प्रवृत्ते चावयोर्वादे प्रयाता: सप्त वासराः॥ पष्टभेऽहनि मया तस्मिन् तत्समनन्तरम् / नभस्थेन महाघोरो हुंकारः शंभुना कृतः। तेन प्रनष्टमैन्द्र तदस्मद्व्याकरणं भुवि / जिताः पाणिनिना सर्वे मूर्खाभूता वयम् पुनः / / (त• 4, 20 - 25) * 3. बर्नेल, पृ० 4.

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