________________ 188 वें पृष्ठ तक चान्द्र के सब सूत्रों का प्रकारादिक्रम से तथा इसी प्रकार उणादिसूत्रों का भी अनुक्रम निर्देश किया है। 205 पृष्ठ तक उणादि द्वारा साधित शब्दों की अकारादिक क्रम से पूरी सूची दी है। उणादिसाधितशब्दों से उनकी ठोक व्युत्पत्ति का पता नहीं चल सकता, क्योंकि धातुओं से शब्दों की साधना विशेषतः कल्पना पर ही निर्भर है। वैयाकरणों ने 'कूप' शब्द को व्युत्पत्ति करते हुए भिन्न-भिन्न शैली का आश्रय लिया; किसी ने कूपशब्द की साधना 'कु' धातु से बताई है, तब निरुक्तकार यास्कने 'कूप' शब्द का सम्बन्ध 'कूप' धातु से भी लगाया है, अथवा 'कु+आप' से 'कूप' शब्द की साधना को है / अमरकोश के प्राचीन वृत्तिकार क्षीरस्वामी ने भी 'कु+आप से 'कूप' शब्द को साधित किया है। इस प्रकार उणादिशब्दों को व्युत्पत्ति कल्पना पर निर्भर होने से पूरी तरह विश्वस्त नहीं मानी जा सकती। उक्त व्युत्पत्तियों के आधार पर 'कूप' शब्ब के ये अर्थ होते हैं 'कु' धातु से कूप-प्रतिध्वनि द्वारा शब्द करने वाला। 'कु+आप' से कूप-जिसमें पानी अल्प है वा कुत्सित-अच्छा नहीं है / 'कुप' धातु से कूप-जहाँ कोप होता है अर्थात् पानी भरने वालियाँ अनेक होने से जहां स्त्रियाँ परस्पर कुपित होती रहती हैं / 'सिंह' शब्द को साधना उणादि में एक प्रकार की नहीं है चान्द्र 'सिंचे धातु से 'सिंह' की व्युत्पत्ति दिखाता है। दूसरे वैयाकरण हिंस्' धातु का विपर्यय करने से 'सिंह' शब्द की साधना दिखाते हैं। इस प्रकार उणादिसूत्रदर्शित साधना ठीक व्युत्पत्ति के लिये प्रामाणिक माधार नहीं बन सकती। इतना प्रासंगिक सूचन बीच में कर दिया है इससे किसी पाठक को अरुचि हो तो क्षमा करने की कृपा करें। करीब 232 वें पृष्ठ तक धातुपाठ के सब धातुओं की प्रकारादिअनुक्रमणिका का निर्देश किया है और साथ में गण तथा धातु के अंक भी दे दिये हैं। इस प्रकार करीब 232 पृष्ठों में यह संस्करण समाप्त होता है। सर्वत्र जहां उपयुक्तता मालूम हुई वहां प्रावश्यक टिप्पण भी दिये गये हैं। टिप्पणों में चान्द्रसूत्रों की तुलना तथा मतान्तर-सम्बन्धी सूचन किया गया है। ला. द. पार्ट स कॉलेज तथा विद्यासभा, अहमदाबाद के पुस्तकालयों से