Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ चंदराजानो रास. अर्थ ॥ ते देशमां श्राजापुरी नामनी एक नगरी बे. जे नगरी सर्व वस्तुनी शोभाथी अलंकृत. ते नगरीनी शोजापासे लंका पण पोतानी शोजामाटे शंका धारण करेबे छाने कालकापुरी तो ते नगरी पासे मी पण रहीशके तेमनथी ॥ ११ ॥ चोराशी चौटां विस्तार, जगती सम उत्तंग प्राकार ॥ ऊत्तम जनगण तेणें संकीर्ण, राजमार्ग बहु मणिय विकीर्ण ॥ १२ ॥ अर्थ ॥ ते नगरीमां चोराशी चौटां बे, जगतीना कोट जेवो तेनो ऊंचो कोटडे. तेमां उत्तम मनुष्योनीज वस्तयां राज्यमार्गमां घणां मणिनो विस्तार ॥ १२ ॥ वर्ण सुवर्णे पूजित सर्व, दाने रविसुत दोय गर्व ॥ धनपति कठिन मेरू अधिकार, ते गुण जनमें नहीय लगार ॥ १३ ॥ अर्थ ॥ त्यां वसनारा सर्व उत्तमवर्णो सुवर्णश्री पूजितहता. तेज॑ना दानथी दातार कर्ण पण गर्व रहित थाय एम हतुं. सुवर्णनो मेरू धनपति बतां कठिन पण त्यां वसनारा लोकोमां तेवो गुण नहतो ॥ १३ ॥ व्यापारी जारी धनपात्र, नारी निरूपम निर्मल गात्र ॥ देरा देव सेवे बहु जेव, कयुं पुर वर्णन करि संखेत्र ॥ १४ ॥ ॥ अर्थ | त्यांना व्यापारी बहु धनवान हता. स्त्री निरूपम ने निर्मल गात्रवालीहती ने लोको देव देरासरनी बहु प्रकारे सेवा करताहता. श्राप्रमाणे संदेपमां तेनगरी वर्णवी ॥ १४ ॥ राज्यकरे वीरसेन नरेश, जास प्रजाव घरि लदे रूषि वेष ॥ देवल दंगादिक उपमाय, पुरम एहवो नृपनो न्याय ॥ १५ ॥ अर्थ ॥ तेनापुरीमां वीरसेन नामे राजा राज्य करतो हतो. जे राजानी शक्ति एवी हती के तेना शत्रु तेना प्रजावथी मुनिनो वेष लइ जागी जाताहता. देवालयना दंडनी ऊपमाजेवो नगरमां राजानो न्याय तो हतो ॥ १५ ॥ वीरमती पटराणी तास, विलसे विषयिक जोग विलास ॥ जेहनो सुखदेखी सुरवंश, भूषण यह निशकरे प्रशंस ॥ १५ ॥ ॥ राजा वीरसेनने वीरमतीनामनी पटराणी हती, तेनी साथे राजा विषयभोगना विलासमां श्रानंदकरतो हतो. जेनुं सुख देखीने देवतार्जुना वंशमां आभूषण रूप एवो इंद्र पण निरंतर तेनी प्रशंसा करतो हतो ॥ १६ ॥ चरित्र पीठिका पेहेली ढाल, मोहन विजये कही रसाल ॥ श्रोता सुणजो तजि व्याघात, आगल यति मीठीढे वात ॥ १७ ॥ अर्थ ॥ श्राचरित्रनी पीठिका रूप ने रसिक एवी पेहेलीढाल श्री मोहनविजयजी ए कहेली बे. हे ! श्रोता ! हवे विदेपनो त्यागकरी सांजलजो. आगल घणी मीठी वात श्रावे ॥ १७ ॥ Jain Educationa International ॥ दोहा ॥ हवे आव्या नगरीए, सोदागर शिरदार ॥ बहु मोला घोमातणा, करवाने व्यापार ॥ १ ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 396