Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ ३ चंदराजानो रास. शाखा चार पोहोली दो कोश, थायत पन्नर कोश उक्कोस ॥ सिकायतन विडमने अग्र, देव श्रणाढी रक्षक जय ॥४॥ अर्थ ॥ तेनी चार शाखन बे बे कोश पोहोली, वली ते लंबाई अने ऊंचाईमा पन्नर कोश प्रमाण. तेना अग्र उपर सिहायतन, जेनो रक्षक अणाढी नामे उग्र देवता ॥४॥ कंचन शाखा प्रशाखारूप, रयण वैडूर्य पलास अनूप ॥ तवणिजामय यश वृत्त विवृक्ष, जंबुनद पल्लव सुप्रसिद्ध ॥५॥ अर्थ ॥ तेनी शाखा अने प्रशाखा सुवर्णनी, तेना अनुपम पांदडां वैडूर्य रत्नमयजे. वली सुवर्णमय ते वृक्ष यश अने वृत्तांतथी वृद्धि पामेलो. तेनां सुवर्णमय पलवो प्रसिघने ॥५॥ राजत विममें पुप्फ फलपूर, शास्वत जंबुतरू ससनूर ॥ जंबुबहु बीजांडे समीप, थ प्रथा तेणे जंबुद्धीप ॥६॥ अर्थ ॥ तेनां पुष्प अने फलना समूह घणां शोजी रह्यांचे. आ प्रमाणे ते जंबुवृक्ष शास्वत अने तेजश्री प्रकाशी रहेल. तेनी नजीक बीजा अनेक जंबु वृदो. आवीरीते जंबुवृक्षश्रीज तेनी जंबु द्वीप एवी प्रख्याति थइ ॥६॥ तिहां षट खंडथी नारहवास, अष्टमी चं समो सुप्रकाश ॥ क्षेत्र सकलथी उत्तम एष, जिहां सिकाचलतीर्थ विशेष ॥७॥ अर्थ ॥ तेमां उ खंडवालो आ जरतक्षेत्र अष्टमीना चं जेवो प्रकाशित. ते सर्व क्षेत्रोमां उत्तम क्षेत्रने, कारणके त्यां सिद्धाचल नामनुं पवित्र तीर्थ सर्वथी विशेष ॥७॥ गंगा सिंधु जिहां निम्नगा, चऊद चऊद सहस नदी मगा ॥ . सामा पचवीश श्रारयदेश, बीजा थार्य नही लवलेश ॥ ७॥ अर्थ ॥ ज्यां गंगा अने सिंधु नामनी नदी, चौद चौद हजार नदीउनी साधे रहेली, जेमा साडी पचवीश आर्य देशने, बाकीनो एक पण आर्यदेश नथी ॥७॥ मध्यखंग ते नारदतणो, पूरवदेश तिहां सोहामणो ॥ रविपण उदय पामे जिणदेश, लहे जिनवर तिहां ज्ञान विशेष ॥ ५ ॥ अर्थ ॥ नरतक्षेत्रना मध्यखंडमां अति सुशोजित पूर्वदेश श्रावेलोने जे देशमा सूर्य उदय पामे अने ज्यां श्रीजिनेश्वर भगवंत केवलज्ञान प्राप्तकरे ॥ ए॥ निशिपतितेदेशे संचरे, सोल कला ते तव अनुसरे ॥ गंगापण तिण दिशि परवरी, देशतणो एम अतिशयचरी ॥१०॥ - अर्थ ॥ ते देशमां ज्यारे चंजमा संचरेने त्यारे तेने सोल कला प्राप्त थाय. गंगानदी पण ते दिशामां वहे. श्रावीरीते ते देश महत्वतावालो गणायने ।। १० ॥ तिहां नगरी एक थानापुरी; अखिलवस्तु शोनालंकरी॥ लंकापण शंका मन धरे, अलका सलकी न शके खरे ॥ ११॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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