Book Title: Chand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ चंदराजानो रास. __ अर्थ ॥ हे सरस्वति! तमे वरदान आपनारगे अने स्थावर जंगम सर्व पदार्थोमां तमे प्रकाशी रह्यांगे ते श्रा शियस संबंधी रासनी रचना करवामां मारा मुख रूप मंदिरमां निवास करो ॥७॥ गुरू दरियो नरियो गुणे, तरियो किणविध जाय ॥ जास थकथ उपकार जर, प्रणमुं तेहना पाय ॥5॥ अर्थ ॥ गुणोथी परिपूर्ण एवो गुरू रूपी समुज कोनाश्री तो जाय, जेमनो उपकारनो समूह कही शकाय तेवोनथी, एवा गुरूना चरणमां दुं प्रणाम करूंवं ॥ ॥ चंद नरिंद तणो रचुं, शील गुणे सुचरित्र ॥ श्रोता श्रुति नूषण निपुण, परमधर्म सुपवित्र ॥ ए॥ अर्थ ॥ हुँ चंद राजानुं शियल गुणथी भूषित एवं उत्तम चरित्र रचुं नु, जे चरित्र श्रोताऊना कानने श्रानुषणरूप, बुधिवालुं अने परम धर्म युक्त होवाश्री बहुज पवित्र ॥ ए॥ एह कथा रस बागले, मुधा सुधा श्रायास ॥ ते सांजलजो रस रसिक, कविजन वचन विलास ॥१०॥ अर्थ ॥ श्रा कथा रसनी आगल अमृत मेलववानो प्रयास करवो ते वृथाने. तेथी हे रसमा रसिक एवा पुरूषो कविजननां वचननो विलास सांजलजो ॥१०॥ मधुर कथा रचना मधुर, वक्ता मधुर तेम होय ॥ मधुर एतो दीये मधुरता, जो होय श्रोता कोय ॥ १९॥ अर्थ ॥ जे मधुर कथा होय तेनी रचना मधुर होय, तेम वक्तापण मधुर होय पण जो तेमां को श्रोता उत्तम होयतो ते मधुरता पण उत्तम प्रकारनी श्रायः ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ देशी चोपाईनी ॥ जंबुद्धीप जोयण लखजाम, जंबुवृद शोजित उद्दाम ॥ उत्तर कुरु पुर्वो? तेह, जंबुनदमय अतिससनेह ॥१॥ अर्थ ॥ जंबू नामना वृदयी सुशोजित अने उत्कट एवो लाख योजनना विस्तारवालो जंबुधीपने, तेना पूर्व अर्धनागमा उत्तर कुरूने, जे सघलो जंबुनद नामना सुवर्णथी व्याप्तः ॥१॥ पउमवेदि चिऊं दिशि मनोहार, मध्य पिठ वम जोयण विस्तार ॥ ऊंचो मणिमय जोयणचार, ते उपर जंबु तरूसार ॥२॥ अर्थ ॥ तेनी चारे दिशाए मनोहर पद्मवेदिका बे. तेना मध्य पीठ उपर एक योजन विस्तारवाटो वड. तेउपर चार योजन ऊंचो एक मणिमय जंबु वृदः ॥२॥ मूल वयर कंदे श्रारीठ, खंध वैडूर्य मयी सुगिरि ॥ ते तरू खंधे गाउ श्राप, चोविस गाउ विम एमपाठ ॥३॥ __ अर्थ ॥ तेनुं मूल वनमणिमय, तेनो कंद अरिष्ट मणिमयजे, तेनां थडीयां वैडूर्य मणिमयचे. ते वृर्नु अड आठ गाउनुंने अने चोवीश गाउने एवो पण कोर ठेकाणे पाठ ॥ ३ ॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 396