Book Title: Chamatkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 8
________________ चमत्कार करते जो कुछ शक्ति प्राप्त करते हो, उस शक्ति का दूसरों के लिए उपयोग करते हो, इसलिए वह दूसरों के लिए बड़ा आश्चर्य हो जाता है, उसे सिद्धि भुनाना कहा जाता है। अब वह चमत्कार माना जाएगा क्या? क्योंकि दूसरा कोई सिद्धि को भुनाए तो वैसा ही चमत्कार हो सकता है, इसलिए दूसरा कर सके वह चमत्कार कहलाता ही नहीं ! शुद्धि वहाँ सिद्धि अब सिद्धि यानी, ऐसा है न, 'ज्ञान' नहीं हो तो भी अनंत- अपार शक्तियाँ है । अज्ञानदशा में भी अहंकार तो है ही न! पर अहंकार को शुद्ध करे, खुद खुद के लिए कुछ भी उपयोग न करे, खुद के हिस्से में आया हो तो भी दूसरों को दे दे, खुद सकुचाकर रहे, तो बहुत सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं। अर्थात् संयम के अनुपात में सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं और वह भी आत्मज्ञान के बिना खरी सिद्धि तो होती ही नहीं। इन लोगों को तो हृदयशुद्धि की सिद्धि होती है। सिर्फ हृदयशुद्धि ही होती है और ज्ञान भले ही न हो, हिन्दुस्तान के लोगों को ज्ञान (आत्मज्ञान) तो है ही नहीं, परन्तु हृदयशुद्धि होती है न, यानी कि वह चोखा होता है, गलत पैसे भी नहीं लेता है, गलत खर्चा भी नहीं करता है, जहाँ एक पैसे का भी दुरुपयोग नहीं होता, लोगों से पैसे नहीं ऐंठता, और खुद के अहंकार का नशा नहीं रखता, दूसरा ऐसे गप्प नहीं लगाता कि ऐसा कर दिया और उसको ऐसा कर डाला, वहाँ उन लोगों को हृदयशुद्धि की सिद्धि होती है। वह बहुत अच्छी चीज़ कहलाती है, पर वहाँ कुछ भी 'ज्ञान' नहीं होता। सिद्धि की सिमिली सिद्धि का अर्थ आपको समझाऊँ, वह आपकी भाषा में आपको समझ में आए इसलिए। आप कौन-से बाज़ार में व्यापार करते हो? प्रश्नकर्ता: लोहा बाज़ार में। दादाश्री : अब उस पूरे लोहा बाज़ार में वह व्यक्ति इतना अधिक इज्ज़तदार माना जाता है कि 'भाई, नूर महम्मद सेठ की तो बात ही मत चमत्कार पूछो, कहना पड़ेगा उन सेठ के लिए तो !' हरएक व्यापारी ऐसा कहे और वहाँ पाँच लाख रुपये आपने रखे हों न, फिर आप कहो कि, 'साहब, एक महीने के लिए मैंने रखे हैं, तो वापिस मिलेंगे?' तब वह कहे, 'महीना पूरा हो तब ले जाना।' तब महीना पूरा हो और सभी वापिस दे देते हैं। पर फिर दूसरे लोग वापिस रखकर जाते हैं क्या? क्यों? वे इतना तो जानते हैं कि अब लोग पैसा दबाते हैं, फिर भी इनके यहाँ रख जाते हैं, उसका क्या कारण है? उसने सिद्धि प्राप्त की है। अब सिद्धि होने के बावजूद खुद पैसे नहीं दबाता, सिद्धि का उपयोग नहीं करता, इस सिद्धि का दुरुपयोग नहीं करता और दुरुपयोग एक बार करे तो ? सिद्धि भुना दी। फिर कोई पैसा उधार देगा नहीं, बाप भी नहीं देगा। ये दूसरी सिद्धियाँ भी इसके जैसी ही हैं। इस उदाहरण पर से मैंने सिमिली (उपमा) दी है। अब वह सेठ बाज़ार में से दस लाख रुपये इकट्ठे करके और फिर ले आए। फिर समय आने पर वापिस सबको दे दे और समय से दे दे, इसलिए कभी पच्चीस लाख रुपये चाहिए तो उसे सिद्धि है या नहीं? प्रश्नकर्ता: इसमें वह सिद्धि नहीं कहलाती। यह तो नोर्मल पावर की बात हुई, व्यवहार की बात हुई, और सिद्धि तो एब्नोर्मल पावर की बात है। दादाश्री : हाँ, पर वह सिद्धि भी इसके जैसी ही है। मनुष्य ने किसी पावर का उपयोग नहीं किया हो न, तो वह उपयोगी हो जाता है। पर फिर पावर का उपयोग करे तो सिद्धि खतम हो जाती है ! इसलिए वह आदमी चलते-फिरते पच्चीस लाख रुपये इकट्ठे कर सकता है, हम नहीं समझ जाएँ कि ओहोहो, कितनी सिद्धि रखता है! सिद्धि कितनी है इसकी ! ऐसे प्राप्त हों सिद्धियाँ और एक आदमी रुपये जमा करवाने फिरे तो भी लोग कहेंगे, 'नहीं भाई, हम किसीसे लेते ही नहीं है अभी।' तब यह कितना झगड़ेवाला

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