Book Title: Chamatkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 35
________________ चमत्कार चमत्कार दादाश्री : वह चमत्कार नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो वह वचनबल कहलाएगा? दादाश्री : नहीं, वह सिद्धि है। उसे चमत्कार नहीं मान सकते। चमत्कार तो वह कि कोई दूसरा नहीं कर सके और यह तो मेरे जैसा कोई अक्रम विज्ञानी हो तो कर सकेगा। जितना सिद्धत्व प्राप्त किया है, उतना कर सकेगा। यह यहाँ पर जो होता है न, ऐसे चमत्कार ही नहीं होते न, एक मनुष्य को मोक्ष देना, वह कोई ऐसी-वैसी बात है! अरे, एक मनुष्य को चिंता रहित बना देना वह भी कोई ऐसी-वैसी बात है! इन सब जगहों पर तो घड़ीभर के लिए सत्संग करके गया हो, और फिर बाहर जाए तो चिंता ही चिंता। था वैसा का वैसा ही। और यहाँ तो हमेशा के लिए चिंतामुक्त ही हो जाता है न! फिर भी वह चमत्कार नहीं है, 'साइन्स' है! हमारे भतीजे के बेटे क्या कहते थे कि दादा को देखते ही आत्मा को ठंडक हो जाती है। दादा आपको देखते ही, मेरे आत्मा को ठंडक हुए बिना कोई क्षण नहीं जाता। तो यह सिर्फ एक मोती देखकर आँख को ठंडक हो जाती है, इसलिए तो मोती की कीमत आँकी है, तो 'दादा आपको देखते ही मेरे आत्मा को ठंडक होती है' ऐसी जिसे समझ हो न, तो वह और कहीं चमत्कार ढूंढने जाएगा? इसलिए ये भाई कहते हैं कि ये 'दादा' बड़े-बड़े चमत्कार करते हैं। वह यदि देखना आए तो बहुत बड़ा चमत्कार है। वर्ल्ड में नहीं हुआ हो वैसे 'दादा' के चमत्कार हैं, पर देखना आना चाहिए। इन्सिडेन्ट एन्ड एक्सिडेन्ट प्रश्नकर्ता : साधारण मनुष्य को भी कई बार जीवन में चमत्कारिक अनुभव होते हैं, वह क्या होगा? दादाश्री : जगत् में लोग जिसे चमत्कार कहते हैं या फिर इस दुनिया में चमत्कार मतलब 'अचानक हो गया' कहेंगे, यानी एक्सिडेन्ट कहते हैं या फिर चमत्कार कहते हैं। पर 'एन इन्सिडेन्ट हेज़ सो मेनी कॉज़ेज़ एन्ड एन एक्सिडेन्ट हेज टू मेनी कॉज़ेज!' (एक इन्सिडेन्ट कई कारणों से होता है और एक एक्सिडेन्ट होने में बहुत सारे कारण होते हैं) इसलिए अचानक तो कुछ होता ही नहीं न! हो गया वह सारा पहले का रिहर्सल हो चुका है। पहले रिहर्सल हो गया है, वही यह चीज़ है। जैसे नाटक में रिहर्सल पहले करके और फिर नाटक करने भेजते हैं। उसी तरह इस पूरे जगत् का, जीव मात्र का रिहर्सल पहले हो गया है और उसके बाद फिर यह होता है। इसलिए मैं कहता हूँ कि डर रखने जैसा नहीं है। क्योंकि जो होना है, उसमें परिवर्तन नहीं हो सकता। नाटक सेट हो चुका है यह! प्रश्नकर्ता : तो उस नाटक का डायरेक्टर कौन? दादाश्री : यह ओटोमेटिकली ही हो जाता है। यह सूर्य एक ही दिखता है, पर सूर्य तो बदलता ही रहता है (सूर्य के बिंब में रहनेवाले देवता बदलते रहते हैं)। उनका आयुष्य पूरा हुआ कि च्यवन (आत्मा की दैवीय शरीर छोड़ने की क्रिया) हो जाता है (बिंब छोड़ देते हैं) और दूसरे भीतर आ जाते हैं। यानी कि वे भीतर से बदल जाते हैं और यह बिंब वही का वही रहता है। ऐसा रेग्युलर रूप से प्रबंधित है यह जगत्। बिलकुल रेग्युलर प्रबंधित हुआ है। किसीको कुछ करना पड़े वैसा नहीं है। यदि भगवान कर्ता हुए होते तो वे बंधन में आ जाते। इस दुनिया में दो चीजें नहीं हैं, वे दो चीजें भेड़चाल के लिए हैं। जिसे लोग कहते हैं न कि ऐक्सिडेन्ट हआ तो वैसी वस्तु ही नहीं है, वह भेड़चाल के लिए है। विचारवंत के लिए एक्सिडेन्ट होता ही नहीं न! और एक चमत्कार, वह भी भेड़चालवाले लोग मानते हैं, विचारवंत नहीं मानते। ___ 'एन इन्सिडेन्ट हेज़ सो मेनी कॉज़ेज़, एन एक्सिडेन्ट हेज़ टू मेनी कॉजेज!' उसी प्रकार इस चमत्कार में भी सो मेनी कॉजेजवाला है।

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