Book Title: Chamatkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 24
________________ चमत्कार ३५ प्रेम आता है न, वह भी छोड़ देंगे सब। और ऐसा कहें तो हम पूछें, 'अरे भाई, इस वकील को ही क्यों दिया? दूसरे को क्यों नहीं देते? उसका क्या कारण है? कहो चलो? और आप देनेवाले हो तो दस वर्ष ही क्यों दिया? चालीस वर्ष दे देने थे न !' ऐसे सब मैं तो सौ प्रश्न खड़े करूँ। क्या कह रहे थे? यहाँ पर दस वर्ष का आयुष्य दिया? प्रश्नकर्ता: ऐसा मैंने सुना था । दादाश्री : सुना हुआ गलत भी होता है कभी। दूसरा कुछ सुना है ऐसा? किसी मनुष्य या गुरु की निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या गलत है और क्या सच है, उसकी बात ही करने जैसी नहीं है! आपने भी सच मान लिया था ऐसा सब? आप तो पढ़े-लिखे हो, आपको इस बात पर अब शंका होती है या नहीं होती? प्रश्नकर्ता: शंका होती है। दादाश्री : शंका हो, वह बात छोड़ देना, मानना नहीं उसे ! लिखे हुए लेख नहीं मिटते किसीसे प्रश्नकर्ता: संत लेख को मिटा सकते हैं क्या? दादाश्री : यह फ़ॉरेन डिपार्टमेन्ट है न, उसमें लेख को मिटाया जा सके ऐसा है ही नहीं और मिटा दिया वैसा दिखता है, हमें अनुभव में आता है, संत के माध्यम से या ज्ञानी पुरुष के माध्यम से, यह उनके यशनाम कर्म का फल आया है! इसलिए लेख को कोई मिटा नहीं सकता। नहीं तो कृष्ण भगवान नहीं मिटा देते? उन्हें मिटाना नहीं आता था? वे तो खुद वासुदेव नारायण कहलाते हैं। प्रश्नकर्ता: पर कितने संत ऐसा भी कहते हैं कि उन्होंने मृत्यु को दूर करने का प्रयत्न किया था ! दादाश्री : ऐसा है न, हिन्दुस्तान में सब संतों ने मृत्यु को दूर करने के प्रयत्न किए हैं। पर किसीको ऐसा लगा है कि मृत्यु दूर हो गई है, ३६ चमत्कार ऐसा? इसलिए यह सब अहंकार है। अहंकार से बाहर कोई संत निकले नहीं हैं। वह सारा अहंकार है, और अहंकारियों को समझाने के लिए है। निर्अहंकारी तो ऐसी बातें सुनें भी नहीं। पागल आदमी बोलता हो न, उस जैसी बात करते हैं ये तो! ये तो अपने सभी संत ऐसा बोलते हैं, पर वे तो अहंकार से बोलते हैं और सुननेवाले भी अहंकारवाले हैं, इसलिए चल गया ! यह तो साइन्टिफिक तरह से समझ में आए वैसा है। विज्ञान से समझ में आएगा या नहीं आएगा? यह तो विज्ञान है और विज्ञान क्या कहता है कि संडास जाने की शक्ति किसीको नहीं है, संतों को भी संडास जाने की शक्ति नहीं है और हमें भी संडास जाने की शक्ति खुद की नहीं है। भगवान महावीर का जब अंतिम निर्वाणकाल आ गया तब देवताओं ने विनती की कि, 'वीर, आयुष्य बढ़ाइए जी! दो-तीन मिनट का आयुष्य बढ़ाएँ तो इस दुनिया पर भस्मक ग्रह का असर नहीं पड़ेगा।' पर भस्मक ग्रह का असर पड़ा, इसलिए ये दुःख उठाए। वे दुःख नहीं पड़ें इसलिए देवताओं ने भगवान से कहा था। तब भगवान बोले कि, 'वैसा हुआ नहीं, होगा नहीं और भस्मक ग्रह आनेवाला है और वह होने ही वाला है।' यह विज्ञान की भाषा ! और इस अहंकार की भाषा में तो जिसे जो अच्छा लगे वैसा बोलते हैं न! 'मैंने आपको बचाया ऐसा भी कहते हैं। अपने सभी संत ऐसा का ऐसा ही बोलते हैं। उसमें उन संतों ने एक आना भी अध्यात्म का कमाया नहीं है। अभी आत्मा के सन्मुख गए नहीं हैं। अभी तो तीन योगों में ही हैं। मन-वचन-काया के योग में ही हैं, आत्मयोग की तरफ मुड़े ही नहीं। अब बहुत खुल्ला करूँ तो बुरा दिखेगा। मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए। मतलब, ये लोग अभी योग की प्रक्रिया में ही हैं और वश करते हैं- मन को, वाणी को, देह को। पर वश करनेवाला कौन? अहंकार । इसलिए आयुष्य कोई बढ़ा नहीं सकता। कोई व्यक्ति वैसा शोर मचाए कि 'मुझे ऐसी शक्ति है।' तो हम कहें कि, 'संडास जाने की शक्ति तो है नहीं और किसलिए बेकार शोर मचाता है ऐसे? तेरी आबरू जा

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