Book Title: Chamatkar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 11
________________ चमत्कार १० चमत्कार भगवान कहते हैं, 'मैं जीवनदाता नहीं हूँ, मैं मोक्षदाता हूँ। मैं, कोई मरे उसे जीवन का दान देनेवाला नहीं हूँ, मैं मोक्ष का दान देने आया हूँ!' अब उन लोगों को तो ऐसा ही लगे न कि ऐसे गरु से तो दूसरे गुरु बनाए होते तो अच्छा था। पर मेरे जैसे को तो कितना आनंद हो जाए! धन्यभाग्य गुरु ये! कहना पड़ेगा! इनके ही शिष्य होने की ज़रूरत है। तो उनका ही शिष्य बना था। उन्हीं महावीर का शिष्य बना था। कैसे भगवान महावीर! गोशाला ने धोखा दिया, बहत सारों ने उन्हें धोखा दिया, पर भगवान टस से मस नहीं हुए, सिद्धि का उपयोग नहीं किया! फिर गोशाला ने भगवान पर क्या किया था, जानते हो आप? तेजोलेश्या छोड़ी थी। उन दो शिष्यों पर भी तेजोलेश्या ही छोड़ी थी उसने, वे खत्म हो गए, वैसे ही भगवान भी खत्म हो जाते, पर भगवान तो चरम शरीरी थे इसलिए उन पर किसी भी प्रकार का घात नहीं हो सकता था। चरम शरीर तो काटने से कटता नहीं, पुद्गल भी वैसा सुंदर! पर फिर छह महीनों तक संडास में बहुत रक्त निकला। फिर भी उस पुरुष ने थोड़ी-सी भी सिद्धि का उपयोग नहीं किया ! सिद्धि का दुरुपयोग न करें वे ज्ञानी और 'ज्ञानी पुरुष' भी सिद्धि का उपयोग नहीं करते। हमारा सहज ही हाथ छू जाए न तो भी सामनेवाले का कल्याण हो जाए। बाक़ी, 'ज्ञानी पुरुष' अपने घर पर भी सिद्धि का उपयोग नहीं करते और बाहर भी नहीं करते, शरीर के लिए भी उपयोग नहीं करते! किसलिए डॉक्टर के पास जाएँ? ये डॉक्टर तो कहते हैं, 'आपको ज्ञानी पुरुष को किसलिए आना पड़ता है?' तब मैंने कहा, 'मैं पेशेन्ट हूँ, इसलिए आना पड़ता है।' मतलब देह के लिए भी किसी सिद्धि का उपयोग नहीं करना है। अज्ञानी तो सिद्धि को जहाँ-तहाँ खर्च कर देता है। जितनी उसके पास इकट्ठी हुई हो, तो लोगों ने उसे 'बापजी, बापजी' कहा तो वह वहाँ खर्च हो जाती है। जब कि ज्ञानी के पास तो, उनकी जितनी जमा हुई हो न, उसमें से एक आना भी सिद्धि खर्च नहीं होती। और 'ज्ञानी पुरुष' तो गज़ब ही कहलाते हैं। जगत् तो अभी तक उन्हें समझा ही नहीं है। उनकी सिद्धियाँ तो, हाथ लगाएँ और काम हो जाए। ये यहाँ जो लोगों में सब परिवर्तन हए हैं न, वैसे किसीसे एक व्यक्ति में भी परिवर्तन नहीं हुए हैं। यह तो आपने देखा न?! क्या परिवर्तन हुए हैं? बाक़ी यह तो कभी हुआ ही नहीं, प्रकृति बदलती ही नहीं मनुष्य की! पर वह भी हुआ है अपने यहाँ! अब ये तो बड़े-बड़े चमत्कार कहलाते हैं, गज़ब के चमत्कार कहलाते हैं। इतनी उम्र में ये भाई कहते हैं कि, 'मेरा तो, मेरा घर स्वर्ग जैसा हो गया है, स्वर्ग में भी ऐसा नहीं होगा!' प्रश्नकर्ता : वही शक्ति है न! दादाश्री : गज़ब की शक्ति होती है 'ज्ञानी पुरुष' में तो, हाथ लगाएँ और काम हो जाए! पर हम सिद्धि का उपयोग नहीं करते। हमें तो कभी भी सिद्धि का उपयोग नहीं करना होता है। यह तो सहज उत्पन्न हुई होती हैं, हम उपयोग करें तो सिद्धि खतम हो जाए! ये दूसरे सभी लोगों की तो सिद्धि वापिस खर्च हो जाती है, कमाया हो वह खर्च हो जाता है। आपकी तो खर्च नहीं हो जाती न? । प्रश्नकर्ता : ना, खर्च नहीं करेंगे। पर वैसी सिद्धि उत्पन्न हों तो अच्छा । दादाश्री : अरे, थोड़ा यदि चढ़ाएँ न आपको, तो तुरन्त ही सिद्धि का उपयोग कर दोगे आप! और हमें चढ़ाओ देखें, हम एक भी सिद्धि का उपयोग नहीं करेंगे! जिनके पास इतनी सारी सिद्धियाँ होने के बावजूद, उन्होंने एक फूंक मारी होती तो जगत् उल्टा-सीधा हो जाए, उतनी शक्ति रखनेवाले महावीर, ऐसे भगवान महावीर ने क्या कहा? 'मैं जीवनदाता नहीं हूँ, मैं मोक्षदाता हूँ!' अब वहाँ यदि यह सिद्धि भुना दी होती महावीर ने, तो उनका तीर्थकरपन चला जाता! इन शिष्यों के कहने से चढ़ गए होते महावीर, तो तीर्थंकरपन चला जाता। पर भगवान चढ़े नहीं, शायद मेरे

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