Book Title: Buddha aur Mahavir
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ १२४ भाषण ५. अपनी मासिक कमाई की एक मध्यम मर्यादा बनाकर उससे अधिक कमाई न करना । बधिक कमाई न होती हो, तो शेष सारी कम सार्वजनिक हित के कामों में अथवा मेहनत-मजदूरी करनेवाले वर्गों को स्वावलंबी बनाने में इस्तेमाल करना। ६. दान या धर्मादाय का पैसा सेत सेत कर न रखना। उसे बढ़ाने के बदले खर्च कर डालने का प्रयत्न करना। ७. नौकर-चाकर तथा मजदूर-कारीगरों को पूरा और उदारता से पारिश्रमिक देना, भले-बुरे मौकोंपर उनकी मदद करना और अपने भोग-विलास कम करके उनकी हाजतें पूरी करना। ८. हमारे पास काफी पैसा हो तो भी भोग-विलास कमा करना तथा सादगी और संयम से रहना । अपने भोग-विलास और व्यक्तिगत खर्च द्वारा पैसे की इफरात दिखाने में बड़प्पन न मानना। ६. जहाँतक हो सके, अपनी जरूरत की सारी चीज सीधे उन्हें बनानेवाले कारीगरों से खरीदना, उन्हें मजदूरी से रखनेवाले व्यापारियों या कारखानेवालों से नहीं। अर्थात मिल का कपड़ा था बड़े-बड़े कारखानों में बनने वाला माल न बरतकर खादी, प्रामउद्योग और दस्तकारियों को नशेजन देना। इस प्रकार यदि हम अपना-अपना व्यापार सुधार कर पवित्र करें, तो गांधीजी की भाषा में जग फेरफार करके कहा जा सकता

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165