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भाषण
५. अपनी मासिक कमाई की एक मध्यम मर्यादा बनाकर उससे अधिक कमाई न करना । बधिक कमाई न होती हो, तो शेष सारी कम सार्वजनिक हित के कामों में अथवा मेहनत-मजदूरी करनेवाले वर्गों को स्वावलंबी बनाने में इस्तेमाल करना।
६. दान या धर्मादाय का पैसा सेत सेत कर न रखना। उसे बढ़ाने के बदले खर्च कर डालने का प्रयत्न करना।
७. नौकर-चाकर तथा मजदूर-कारीगरों को पूरा और उदारता से पारिश्रमिक देना, भले-बुरे मौकोंपर उनकी मदद करना और अपने भोग-विलास कम करके उनकी हाजतें पूरी करना।
८. हमारे पास काफी पैसा हो तो भी भोग-विलास कमा करना तथा सादगी और संयम से रहना । अपने भोग-विलास और व्यक्तिगत खर्च द्वारा पैसे की इफरात दिखाने में बड़प्पन न मानना।
६. जहाँतक हो सके, अपनी जरूरत की सारी चीज सीधे उन्हें बनानेवाले कारीगरों से खरीदना, उन्हें मजदूरी से रखनेवाले व्यापारियों या कारखानेवालों से नहीं। अर्थात मिल का कपड़ा था बड़े-बड़े कारखानों में बनने वाला माल न बरतकर खादी, प्रामउद्योग और दस्तकारियों को नशेजन देना।
इस प्रकार यदि हम अपना-अपना व्यापार सुधार कर पवित्र करें, तो गांधीजी की भाषा में जग फेरफार करके कहा जा सकता