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महिंसा के नये पहाडे
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१८. नए पहाडे
ये अहिंसा के नये गुरू या पहाड़े हैं। हमें अपने व्यापार में इनके आधार पर हिसाब करना सीखना चाहिए। अगर मनुष्यसमाज के व्यवहार में हमने इन्हें दाखिल नहीं किया तो छोटे-छोटे जीवों की रक्षा की जो हम चिन्ता करते हैं वह, और हमारी सारी दान-वृत्ति अहिसा का मजाक हो सकता है। कोई ऐसा न समझे कि मैं जीवदया को निकम्मी चीज समझता हूँ। वह भी आवश्यक है। उसके लिए जो कुछ किया जा रहा है, उसमें कुछ संशोधन की जरूरत भले हो हो, लेकिन जो कुछ किया जा रहा है, उसे कम करनेकी सिफारिश नहीं करता। परन्तु मनुष्यों के परस्पर व्यवहार में अहिंसा दाखिल करने की जरूरत इसकी अपेक्षा कहीं अधिक महत्त्व की है।
इस दृष्टि से निम्न प्रकार के व्यक्तिगत निश्चय किये जा सकते हैं:
१. मनुष्य की हिसा करनेवाली प्रवृत्तियों या व्यापारों में अपना निजी या धर्मादाय का पैसा न लगाना ।।
२. किसी भी व्यापार में मूलधन पर जिससे दो या ढाई प्रतिशत से अधिक व्याज मिले इतना नफा न लेना।
३. सट्टा और जुआ समान मानना।
४. शरीर-परिश्रम करनेवाले व्यक्ति को कर्ज देनेका मौका आवे तो बम्बई जैसे बड़े शहर में जबतक वह कम-से-कम डेढ़-दो रुपया रोज कमाई न कर सके तबतक उससे व्याज न लेना।