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अहिंसा के नये पहाड़े
१२५ " सब तरफ संतोष फैलेगा, व्यर्थ की स्पर्धा नष्ट होगी, ईर्षा जाती:रहेगी; कोई भूखों न मरेगा, जन्म-मरण में सम्-तुलन रहेगा, ज्याधियाँ कम होंगी और युद्ध बंद होंगे। अगर शुद्ध अहिंसा-धर्म का वास्तविक पालन होता हो, तो राजा और हाकिम प्रभुत्व या सिर-जोरी करें, वैश्य महल-मंजिल बनावें और मूल्यवान वसों तथा आभूषणों से लदे रहें और ज्ञानदाता शिक्षक तथा मेहनत करनेवाले कारीगर और मजदूर खानाबदोश होकर रोटियों के लिए मुहताज हो जायें, ऐसी दया-जनक स्थिति नहीं होनी चाहिए।"
पर्यषण के पवित्र दिनों में इन बातोंपर विचार करने का अनुरोध करता हूँ।