Book Title: Buddha aur Mahavir
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 152
________________ महावीर का जीवन धर्म इच्छा न करें, उसमें से वे आगे बढ़ना चाहें तो यह देखकर प्रसन्न हों। १९. बच्चों के विवाह की आपपर कोई जिम्मेवारी नहीं है। लेकिन यदि आप उन्हें ब्याह तो बहूको लड़की के समान मानने और बच्चों का सुखी संसार देख प्रसन्न होनेका फर्ज अवश्य है। २०. सब के हित में ही आपका हित है: आपको जरूरी दिखाई दे तो बाप अपने गांव या देश को छोड़कर चले जाइये लेकिन आप ऐसा कोई काम नहीं कर सकते जिससे अपके गांव या देश का अहित हो, फिर आपको भले अपने जान-माल की जोखम उठाना पड़े। यदि आपके ग्राम में पानी का दुख हो और आपके कुएं में बहुत पानी हो तो वह कुआँ गाँवको ही सौंप देना चाहिए। यदि विदेशी कपड़े के व्यापार से आपको बहुत लाभ होता हो लेकिन उससे अापके देशको नुकसान पहुँचता हो तो आपको वह व्यापार बंद कर देना चाहिए । यदि आपकी शालाएँ स्वतंत्र रखने में ही देशका हित हो तो चाहे जितना नुकसान उठाकर भी आपको एसा ही करना चाहिए । पाममें या देश में रहकर उसके प्रति कर्तव्यसे विमुख रहनेपर आप परमार्थ साधने की बिलकुल बाशा न रखें। जिसे आप परमार्थ की सिद्धि मानेंगे यह परमार्थ नहीं, सिर्फ कल्पना होगी। २१. प्रेम रहित साधना व्यर्थ है। वैराग्य और प्रेम ये दो विरोधी वृत्तियाँ हैं, ऐसा खयाल यहि बापका हो तो वह बिलकुल मिथ्या है, यह मैं पापको निश्चयपूर्वक

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