Book Title: Buddha aur Mahavir
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

View full book text
Previous | Next

Page 161
________________ १४६ भाषण शक्ति रखते थे । उन्हें गरीबी का भय नहीं था, ठंड-गर्मी का भय नहीं था, विकराल तथा जहरी प्राणियों का भय नहीं था, बल्कि उन सबको भयभीत करने की शक्ति थी । किन्तु उन्होंने उन सब को अभय दान दिया । अहिंसा का दूसरा अर्थ अभयदान हो सकता है। मेरे पास धन हो तो धन का दान कर सकता हूँ, वख हो तो बल का दान कर सकता हूँ, बुद्धि हो तो बुद्धि का दान कर सकता हूँ, विद्या हो तो विद्या का दान कर सकता हूँ, वैसे ही मेरे पास अभय हां तो ही मैं अभय दान दे सकता हूँ । ३४. सप और उत्सव विरोधी बातें हैं : बाहर से देखने पर जैन समाज की दो बातें ध्यान खींचती हैं। एक तो उनकी तपप्रियता और दूसरी जुलूस ( उत्सव ) प्रियता । ये दोनों विरोधी बातें हैं। जैसे ब्राह्मण धर्म की किसी भी धार्मिक क्रिया के प्रारंभ में और अन्त में स्नान होता है, वैसे ही मालूम होता है कि आप लोगों में प्रत्येक क्रिया के साथ उत्सव होता हो है । आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से उत्सव - हर प्रसिद्धि के लिए होनेवाला कर्म-वित्र रूप है। इससे जिसके लिए उत्सव होता है। उसकी अवनति होती है और उत्सव करनेवाले का कोई लाभ नहीं होता । जैसे कोई मनुष्य अनाज का खूब गोदाम भरकर रखे और उपद्रवी लोग उसे तोड़ डालें और अनाज ले तो न जायें, लेकिन धूल में निखेर दें; वैसे हो कोई आदमी कठिन तप करे और आप

Loading...

Page Navigation
1 ... 159 160 161 162 163 164 165