Book Title: Buddha aur Mahavir
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 156
________________ मेहावीर का जीवन-धर्म १४१ .. २६. निराशा और कमजोरी से मोम नहीं मिलता: मोक्ष के मार्ग पर चलने की इच्छावाला पुरुष अत्यन्त दृढ़ निश्चयी, साहसी व पुरुषार्थ में श्रद्धा रखनेवाला होना चाहिए। इस बात की साक्षी राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर इत्यादि प्रत्येक का जीवन है । उसके बदले हममें आज ऐसी मान्यता घर कर गई है कि सांसारिक कार्यों में अयोग्य साबित होनेवाले मोक्ष के अधिकारी हैं। पुरुषत्व कम हो जाय, स्त्री बदचलन निकले, व्यापार में घाटा आवे, बेटा मर जाय, लड़ाई में हार हो, राजकारण में शिथिलता आवे तब हमारे देश में मोक्ष प्राप्ति को इच्छा उत्पन्न होती है। हम अपने में उत्पन्न हुई निराशा और कम हुए पुरुषार्थ को अपने वैराग्य की और मुमुक्षुता की निशानी मानते हैं। किसी में काम करने का उत्साह न रहे, उकता जाय तब ऐसा मान लेते हैं कि अब उसे संसार की वासना नहीं रही। मैंने सुना है कि बंगभंग आन्दोलन के बाद राजकारण में जब शैथिल्य आ गया था, तब अनेक राजनीतिज्ञों ने हिमालय का आश्रय लिया था। आज भी राजकारण में शैथिल्य देखकर कई युवकों को हिमालय में जाने की इच्छा करते देखा है। मैं विनय-पूर्वक लेकिन सच-सच बतलाना चाहता हूँ कि ईश्वर का मार्ग लोहे के चने चबाने जैसा है। जिनका उत्साह कम हो गया है, पुरुषत्व घट गया है, जीवन से ऊब गए हैं, ऐसे लोग मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते । यह सम्भव है कि कोई किसी दूसरी वस्तु को मोक्ष समझकर सन्तोष मान ले, लेकिन उपशम का प्रत्यक्ष सुख उससे दूर है।

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