Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 8
________________ ३ वन विरहकाल ५, तथा (इगसमइयं) के० एक समये (संबं) के० संख्याए गणतां केटला उपजे ? ते उपपात संख्या ६, तथा एक समये संख्याए गणतां केटला चवे ? ते चवन संख्या ७, तथा (गमण) के० मरीने केटली गतिमां जाय ? ते गति ८, तथा (आगमणे) के० केटली गतिना आव्या जीवो देवपणे उपजे ? ते आगति ९॥ एम देवता तथा नारकीनां नव नव द्वार मळी अढार द्वार थाय. अने मनुष्य तथा तिर्यंचनां भवन विना आठ आठ द्वार मली शोल थाय, एम सर्व मली चोत्रीश द्वार थाय. ए चोत्रीश द्वार कहीशुं, ए अभिधेय का. ग्रन्थकर्ताने ग्रन्थ रचतां जे शुभ आश्रव अने अशुभनी निजरा थाय ते अनन्तर प्रयोजन अने तेथी परंपराए मोक्षप्राप्ती ते परंपरा प्रयोजन जाणवू. ए वे प्रयोजन ग्रन्थकर्तानां जाणवां. तथा श्रोताने देवादिकनुं स्वरूप जाणवू ते श्रोता- अनंतर प्रयोजन अने तेथी परंपराए मोक्षप्राप्ती ते श्रोता, परंपरा प्रयोजन, ए वे प्रयोजन श्रोतानां जाणवां. संबंध बे प्रकारनो छे. गहलो उपायोपेय लक्षग अने बीजो गुरुपर्वक्रम लक्षण. तेमां संग्रहणी ग्रंथ ते उपाय अने तेनु तत्वज्ञान ते उपेय एम बन्ने मलीने आयोपेय लक्षण संबंध जाणवो. तथा गुरुपवक्रमलक्षण ते ए संग्रहणीनो अर्थ श्रीवीरप्रभुए वखाण्यो, त्यार पछी सुधर्मा स्वामीए द्वादशांगीमां गुंथ्यो. त्यांथी श्यामाचार्यादिके पन्नवणा प्रमुखमां गुंथ्यो. त्यांथी जिनभद्र गणि क्षमाश्रमगे आ सग्रहहणीमां उतार्यो. ए गुरुवर्यक्रम लक्षण जाणवु. ए संबंध. कह्यो. वली आ संग्रहणी ग्रन्थ भणवाना अधिकारी साधु साध्वी श्रावक अने श्राविका छे. ते अधिकारीपणुं जाणवू.

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