Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 11
________________ नव इंद्रोनी देवीओर्नु अर्द्धा पल्योपमर्नु अने भूतानेन्द्र प्रमुख नव इंद्रोनी देवीओk (देसूर्ण पलिय) के० देशे जणुं एक पल्योपमनुं (आउमुक्कोसं) के० उत्कृष्ट आयुष्य जाणवू अहिं इन्द्रना उपलक्षणथी सामान्य भुवनपति देवोर्नु तथा तेमनी देवीओनुं उत्कृष्ट आयुष्य पण पूर्वोक्त प्रकारे जाणवू ॥ ४ ॥ हवे व्यंतरदेवता तथा तेमनी देवीओनुं जघन्य अने उत्कृष्ट आयुष्य गाथाना त्रण पदे क ने कहे छे, वंतरियाण,जहन्नं, दसवाससहस्स पलियमुक्कोस।। देवीणं पलियद्धंअर्थ-(वंतरियाण) के० व्यंतरदेवता तथा तेमनी देवीओर्नु (जहन्न) के० जघन्य आयुष्य (दसवाससहस्स) के० दश हजार वर्षनु होय छे. अने व्यंतरदेवोर्नु (पलिय) के० एक पल्योपमनुं तथा (देवीणं) के० तेमनी देवीओन (पलियद्धं) के० अपिल्योपमनु. (उकोस) के० उत्कष्ट आयुष्य जाणवु. . हवे चद्र सूर्य ग्रह नक्षत्र अने तारा ए पांच जातना ज्योतिषी देवता तथा तेमनी देवीओनु जघन्य तथा उत्कृष्ट आयुष्य एक पद अने बे गाथाए करीने कहे छे. १ भवनपतिनी पेठे अहिं व्यन्तरना इन्द्र इन्द्राणिओर्नु आयुष्य का नथी तो पण व्यन्तरेन्द्र अने इन्द्राणीनुं आयुष्य उत्कृष्ट पल्योपम अने अर्ध पल्योपम अनुक्रमे जाणवु. इन्द्र इन्द्राणीओनु जघन्य आयुष्य संभवे नहि. २ श्री डीधृति विगेरे देवीओk आयुष्य १ पल्योपम छे ते व्यन्तर निकायनी नहि पण भवनपति निकायनी होवाथी (१) पल्यापमनुं आयुष्य छे.

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