Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 5
________________ श्रीजी. सौभाग्यश्रीजी आनंद श्रीजी हरखश्रीजी. गुरुणीजीमहारा जश्री सौभाग्यश्रीजीनी शिष्याओ. चंपाश्रीजी. हीरश्रीजी दानश्रीजी. लावण्य श्रीजी. गुलाबश्रीजी दोलत श्रीजी कनकश्रीजी विद्धाश्रीजी मणीश्रीजी सुनंदाश्रीजी. साध्वी आणदश्रीजीनी शिष्याओ. अनोपीजी कमल भीजी शांती श्रीजी चंद्रश्रीजी. साध्वी हरखश्रीजीनी शिष्याओ. प्रसनश्रीजी. साध्वी चंपाश्रीजीनी शिष्याओ. दरसनश्रीजी शिवश्रीजी हीरा श्रीजी खीमाश्रीजी प्रभाश्रीजी साध्वीदान श्रीजीनी शिष्याओ. दीपश्रीजी वलभभीजी. मांगरोलवाला साध्वीजी गुलाबश्रीजीनी शिष्याओ. पुन्यश्रीजी गुणश्रीजी प्रधानश्रीजी. उपर बतावेलो परीवार तथा प्रशिष्याओनो घणो समुदाय विगेरे हालमां विचरे छे. अने घणी श्रावीकाओ तथा वालीकाओने धर्म मार्गमां जोsवामां घणो उपकार करी रह्या छे, एटलुंज नही परंतु प्राचीन स्तवनो जीनशतक दंडक प्रकरण ४९ द्वारखांलुं तेमज नीत्य स्मरणीय शेत्रुंजा प्रकरणो आदि नाना मोटा पुस्तको पण तेमना सदुपदेशथी छपानी बहार पाडवामां आवेला छे अने ते एटला बधा लोकप्रीय थयेला छे के तेनी बजे चार चार आत्तिओ काडवी पडी छे. तेज प्रमाणे आ मोटी संग्रहणीनुं पण पुस्तक लोकप्रीय थशे तेमां कांड संदह जेवुं नथी. 8 " · उपरनी हकीकत जणाव्या बाद हवे आ बृहत्संग्रहणीनी प्रत यंत्रो सहित उक्त गुरुणीजी महाराज तरफथो बरावर सुद्ध करावी छपाववामां आवी छे छतां पण दृष्टी दोपथी तेमज प्रेस दोषथी- जे कांइ भुल चुक रही गइ होय अगर जीनाज्ञा विरुद्ध कांह लखा गयुं होय तेनी क्षमायाची मीच्छामि कडे देवा पूर्वक आ प्रस्तावना समाप्त करवामां आवे छे. एज सुज्ञेशुकीं बहुनां. संवत १९८० ना ' महा शुद५ रवीवार. ली० प्रसिद्धकर्ता.

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