Book Title: Bruhat Sangrahani Author(s): Chandrasuri Publisher: Umedchand Raichand Master View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. सुज्ञ जैनबंधुओ ने व्हेनो. - आ एक अति उत्तम प्रकारनो ग्रंथ छे के जेनुं नाम श्री बृहत्संग्रहणी अर्थात् मोटी संग्रहणीना नामे प्रसिद्ध छे. तेनुं बीजुं नाम त्रलोकदीपीका पण कहेवाय छे अने ते नाम पण सार्थकज छे. एनो अर्थ ए थाय छे के आ ग्रंथ त्रण लोकना दीवा समान छे. कारण के आ ग्रंथनी अंदर देवता- मनुष्य- तिथेच अने नारकी एम चारे गतीना जोवोना - शरीर - आयुष्य. संघयण संस्थानभुवन विमान-गति आगति - विगेरे जाणवानी इच्छा करनाराने आ संग्रहणी नामनुं पूस्तक उत्तम साधन रूप छे. देवता अने नारकी जीव अज्ञानना बलथी बीजी गतीमां रहेला जीवोना आयुष्य प्रमाण तथा सुख दुखने जाणी शके पण मनुष्य तो अवधि ज्ञानना अभावने लीये हमणां पूर्वाचार्याना रचेला ग्रंथोना आधारथीज बीजी गतीना जीवोनां आयुष्य तथा सुख दुःखादि जाणवा समर्थ थाय छे. जो के दरेक जीव उंची गतीमां जवानी तथा विशेष सुख मेळवानी ईच्छा करे छे परन्तु नारकी तिच अने देवता पोतानी गतीथी विशेषे उंची एटले मोक्ष सुख मेळववानी ईच्छा छतां पण चारित्रना अभावे मनुष्य गति पाम्या विना ते मेळवी शकाएं नथी. आम होवाथी पांच ज्ञानना धारक पूर्व महा पुरुषोएं मनुष्य गतीना जीवोना उपकारने माटे अन्य गतिमां रहेला जीना शरीर आयुष्य संत्रण संस्थान विगेरेनुं तेमज सुख दुःख आदिनुं अनेक ग्रंथोनी अंदर वर्णन करेलं छे पण ते बहु ग्रंथोनी अंदर भिन्न भिन्न रुपे वर्ग होवाथी जाणवानी ईच्छा करनारने व दुष्कर थाय छे. आ कारणथी मल्लधारीगच्छना श्री हेमचंद्रसूरिना बाल शिष्य श्रीमान् चंद्रसूरिए अनेक भव्य जीवोना उपकार माटे आ संग्रहणी नामनो ग्रंथ रच्यो छे.Page Navigation
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