Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01 Author(s): Udaychandra Jain Publisher: New Bharatiya Book Corporation View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (vi) आचार्य अकलंकदेव न्यायशास्त्र के विशेषज्ञ माने जाते हैं। जिन्होंने जैन न्याय की यथार्थता को संस्कृत में प्रस्तुत किया। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ इस बात के प्रमाण हैं। लघीयस्त्रय (स्वोपज्ञवृत्तिसहित) न्यायविनिश्चय (स्वोपज्ञवृत्तियुक्त) सिद्धिविनिश्चयसवृत्ति, प्रमाण संग्रहसवृत्ति, तत्त्वार्थवार्तिक सभाष्य, अष्टशती (देवागम-विवृत्ति) आचार्य वीरसेन की ध वला टीका, जय धवला टीका, सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। आचार्य जिनसेन ने भगवान ऋषभदेव से संबंधित जो रचना की है वह आदि पुराण के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने संस्कृत में पार्वाभ्युदय नामक महाकाव्य की रचना की है यह नवीं शताब्दी का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। आचार्य विद्यानंद परीक्षा प्रधानी आचार्य माने जाते हैं जिन्होंने दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। आप्तपरीक्षा, प्रमाण परीक्षा, पत्र परीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा विद्यानंद महोदय, श्रीपुर पार्श्वनाथ स्त्रोत, तावार्थ श्लोक वार्तिक अष्टसहस्त्री युक्त्यनुशासनालंकार आदि जैसे दार्शनिक ग्रंथों का महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य देवसेन का दर्शनसार भावसंग्रह, आराधनासार, तावसार, लघुनयचक, आलापपद्धति आदि ग्रंथ संस्कृत साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जैन संस्कृत काव्य परम्परा संस्कृत काव्य परम्परा राष्ट्रीय मानवीय और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ी हुई परम्परा है। जिसमें वैदिक परंपरा और श्रवण परंपरा इन दोनों ही परंपराओं का महत्वपूर्ण स्थान है। वेद उपनिषद् आदि के उपरान्त, रामायण, महाभारत आदि महाप्रबंधों की रचना हुई, जिन्होंने विषय, भाषा, भाव, छन्द, रस, अलंकार आदि के साथ-साथ मूल कथा को गतिशील बनाया। रामायण, महाभारत आदि के महाप्रबंध को जो काव्य शैली प्रदान की उसे कवि भाष अश्वघोष, कालिदास, भारती, माघ, राजशेखर आदि ने काव्य-शैली को गति प्रदान की। उनके प्रबंध महाप्रबंध बने। संस्कृत काव्य परंपरा का संक्षिप्त विभाजन १. आदिकाल-ई० पू० से ५ ई० प्रथम शती तक। २. विकासकाल-ई० सन् की द्वितीय शती से सातवीं शती तक। ३. हासोन्मुखकाल-ई० सन् की आठवीं शती से बारहवीं शती तक। संस्कृत काव्य परंपरा के विविध चरणों में माघ, हर्षवर्धन, वाणभट्ट, मल्लिनाथ, आदि कवियों के काव्यों ने प्रकृति का सर्वस्व प्रदान किया। उनके कवियों ने अनेक महाप्रबंध लिखे, तथा महाकाव्य भी अनेक लिखे हैं। इसी तरह चरित काव्य, खण्ड काव्य, कथा-काव्य, चम्पूकाव्य आदि ने काव्य गुणों को जीवन्त बनाया। जैन संस्कृत काव्य परम्परा महावीर के पश्चात् सर्वप्रथम जैन मनीषियों ने आगम ग्रंथों की रचना की जो प्राकृत में है। प्राकृत के साथ जैनाचार्यों ने संस्कृत में भी अनेक रचनायें की हैं। जो कवि प्राकृत में रचना करते थे वे संस्कृत के भी जानकार थे परंतु उन्होंने संस्कृत में रचनायें प्रायः नहीं की, परंतु जो संस्कृत कवि थे उन्होंने प्रायः संस्कृत में ही रचनायें की, और कुछेएक रचनायें प्राकृत में की, प्रारंभिक में बारह अंग, उपांग, चौदह पूर्व, जैसी रचनाएं प्रसिद्ध हुई इसके अनंतर संस्कृत के प्रथम सूत्रकार आचार्य उमा स्वामी ने संस्कृत की सूत्र परंपरा को गति प्रदान की जो काव्य जगत् में कवियों के मुखारबिन्द की अनुपम शोभा बनी। आचार्य समन्तभद्र जैसे सारस्वताचार्य ने संस्कृत में न्याय, स्तुति और श्रावकों के आचार योग्य काव्यों की रचना की। इसके अनन्तर संस्कृत में ही आचार्य पूज्यपाद, आचार्य योगेन्द्र, आचार्य मानतंग, आचार्य जिनसेन, आचार्य विद्यानन्द, आचार्य देवसेन, आचार्य अमितगति, आचार्य अमरचन्द्र, आचार्य नरेन्द्रसेन आदि ने जो धारा प्रवाहित की वह For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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