Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंशुः अकञ्चित् अंशीह तत्क्र० खलु यत्र दृष्टि, शेषः समन्तात्, तदनन्य सृष्टि, स आगतोऽसौ पुनरागतो वा, परं तमन्वेति जनोऽत्र यद्वाक्।। (जयो० २६/८८) इस जगत् में अंशी कौन? जिस पर दृष्टि होती है, वही अंशी है और सब ओर विद्यमान शेष पदार्थ अन्य रूप हैं। जिसकी अपेक्षा होती है, वही अंशी हो जाता है, तदरूप | कहलाने लगता है और शेष अतद्प है। अंशुः [अंश्+कु] किरण, रश्मि, प्रभा, कान्ति। रदांशु पुष्पाञ्जलिमपर्यन्ती। (सुद० पृ० १२) दातों की कान्ति पुष्पाञ्जलि अर्पित करती हुई। कुतः श्वेतांशु-कायाऽपि भूया। (सुद० पृ० ८७) श्वेत किरण के समान काया। शीर्ष हिमांशुमुकुलम्। (१८/७०) अंशुः (पु०) सूर्य, रवि। उपद्रुतोऽशुस्तिमिरैः (जयो० १५/२२) संकट के समय अंशु/सूर्य ही अपने शरीर को खण्ड-खण्डकर दीपकों का वेष रख धर-घर में सुशोभित हो रहा है। (अशुस्त्विषि रवौ लेशे 'इति विश्वलोचने) . अंशुकम् [अंशु+क-अशवः सूत्राणि विषया यस्य] वस्त्र, कपड़ा, परिधान, (जयो० २।८०) अम्भसा समुचितेन चांशुकक्षालनादि परिपठ्यतेऽनकम्। (२/८०) निर्मल जल से धोए गए वस्त्रादि निर्दोष माने जाते हैं। ध्वजाली विपादांशुका। (जयो०८) ध्वजाओं की पंक्तियां निर्मल वस्त्र/सफेद वस्त्र भी हैं। अंशक इत्यनेन कुचाञ्चले। (जयो० वृ० १७/६४) अञ्चल का वस्त्र भी इसका अर्थ है। प्रायः रेशमी वस्त्र या मलमल के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। अंशुजाल (न०) किरण समूह, प्रभामण्डल, कान्तरूप। अंशुधर (वि०) किरणधारक, प्रभामण्डित। अंशुपति (पु०) सूर्य, दिनकर, रवि। अंशुबाण (पु०) सूर्य, दिनकर, रवि। अंशुभृत् (वि०) अंशुधारक, किरण युक्त, प्रभारञ्जित। अंशुमान (वि०) अंशुवाला, सूर्य। (वीरो० ८/९) अंशुमालिन् (वि०) सूर्य, दिनकर, रवि। सद्योऽलिमुद्धरति शल्यमिवांशुमाली। सूर्य अपनी प्रिया कमलिनी को कांटे की तरह निकाल रहा है। (अंशुमाली सूर्योऽब्जिनीभ्यः कमलिनीभ्यः शल्यमिव कण्टकमिवालिं षट्पदमुद्धरति। (जयो० वृ० १८/६१) अंशुल (वि०) प्रभायुक्त, कान्तिवान्, सूर्य, चमकीले वस्त्र। (जयो० ५/६२) अंशुस्वामिन् (पु०) दिनकर, सूर्य। अंशुसमाजः (पुं०) किरण समूह, चमक युक्त परिधान। अंशुहस्तः (पु०) सूर्य, दिनकर, रवि। अंस् [चु० पर०] अंसयति-अंसापयति, अंश, खण्ड करना। अंसः [अंस्+अच्] ०भाग, खण्ड० स्कन्ध। (जयो० ६/४०) अंसकूटः (पु०) बैल का कंधा। अंसफलक (वि०) रीढ़ का ऊपरी भाग। अंसभार (वि०) कंधे पर रखा गया भार, जूआ। अंसभारिक (वि०) भारवाहक। अंसभारिन् (वि०) भारवाहक। अंसल (वि०), [अंस्+लच्] बलवान्, शक्तिसम्पन्न। अंसु (पुं०). सूर्य प्रभानन्दन, दिनपति (सुदं० १/३८) ____ अंसुमाली, सूर्य। अंह (भ्वा० आ० अंहत्ते, अंहितुं, अंहित) जाना, समीप जाना, प्रयाण करना, आरम्भ करना, भेजना, चमकना, बोलना. प्रतिपादित करना, कथन करना। अंहतिः (स्त्री) [हन्+अति-अंहादेशश्च] भेंट, उपहार, व्याकुल, ___ कष्ट, चिन्ता, दुःख, बीमारी। अंहस् (नपुं०) अंह:हसी आदि। अंहितिः (स्त्री)[अंह् + क्तिन् ग्रहादित्वान्त् इट्] उपाहार, दान, प्राभृत, भेंट। अंह्नि [अंह+क्रिन्-अंहति गच्छत्यनेन] अंघ्रि, पेड़ की जड़, पैर, चरण। अकंदता (वि०) असारता, ०अनिहयता, ०अनिश्चयता। अक् (भवा०प०र० अकति, अकित) जाना, सांप की तरह टेढ़ा-मेढ़ा चलना। अक (नपुं०) दुःख, पीड़ा, पाप। नाकमवानानुष्ठानेन। (जयो० २२/२४) अकं न प्राप्तवान् (जयो० वृ० २२/२४) दु:ख नहीं प्राप्त किया। नाकं स्वर्ग तथैवाकेन दुःखेन रहितं नाकम्। (वीरो० २/२२ वृ० ) अकाय नाम पापाय क्लेशसंभूतः कष्टकारकः। (जयो० २८/१२) अकम् [न कम्-सुखम्] सुख का अभाव, पीड़ा, पाप, दु:ख (सम्य ६/६) अकच (वि०) कच हीन, केश रहित, मुण्डित। अकञ्चित् (वि०) पापापहार, दु:खापहारी, दु:खजयी, पापजयी। त्वकयि त्वकजिच्च नस्ततां। (जयो० २६/५) अस्माकं प्रजाजनामकजित् पापापहारो। For Private and Personal Use Only

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