Book Title: Bruhad Nirgranth Stutimani Manjusha Part 01
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 277
________________ (५) श्री पउमचरिय-अंतर्गता सिंहकूटजिनभवने रामलक्ष्मणकृता जिनस्तुतिः (प्रायः ईस्वी दशम शताब्द्याः पूर्वार्धम्) (............ छन्दः) तं णिएवि भुवणु भुवणेसरहो । पुणु किउ पणिवाउ जिणेसरहो ॥ १ ॥ जय गय-भय-राय-रोस-विलय । जय मयण-महण तिहुवण-तिलव ॥ २ ॥ जय खम-दम-तव-वय-णियम-करण । जय कलि-मल-कोह-कसाय-हरण ॥ ३ ॥ जय काम-कोह-अरि-दप्प-दलण । जय-जाइ-जरा-मरणत्ति-हरण ॥ ४ ॥ जय जय तव-सूर तिलोय-हिय । जय मण-विचित्त-अरुणें सहिय ॥ ५ ॥ जय धम्म-महारह-वीढे ठिय । जय सिद्धि-वरङ्गण-रण्ण-पिय ॥ ६ ॥ जय संजम-गिरि-सिहरुग्गमिय । जय इन्द-णरिन्द-चन्द-णमिय ॥ ७ ॥ जय सत्त-महाभय-हय-दमण । जय जिण-रवि णाणम्वर-गमण ॥ ८ ॥ जय दुक्किय-कम्म-कुमुय-डहण । जय चउ-गइ-रयणि-तिमिर-महण ॥ ९ ॥ जय इन्दिय-दुद्दम-दणु-दलण । जय जक्ख-महोरग-थुय-चलण ॥ १० ॥ जय केवल-किरणुज्जोय-कर । जय-भविय-रविन्दाणन्दयर ॥ ११ ॥ जय जय भुवणेक्क-चक्क-भमिय । जय-मोक्ख-महीहरे अत्यमिय ॥ १२ ॥ घत्ता भावे तिहि मि जणेहिँ चन्दण करेवि जिणेसहो । पयहिण देवि तिवार पुणु चलियइँ वण-वासहो ॥ १३ ॥

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