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(११) श्रीपउमचरिय-अंतर्गता शान्तिनाथजिनालये रामोद्बोधिता जिनस्तुतिः
(प्रायः ईस्वी दशम शताब्द्याः पूर्वार्धम्)
'जय जय जिणवरिन्द धरणिन्द-णरिन्द-सुरिन्द-वन्दिया जय जय चन्द-खन्द-वर-विन्तर-वहु-विन्दाहिणन्दिया ॥ १ ॥ जय जय वम्भ-सम्भु-मण-भञ्जय-मयरद्धय-विणासणा । जय जय सयल-समग्ग-दुब्भेय-पयासिय-चारु-सासणा ॥ २ ॥ जय जय सुठु-पुट्ठ-दुट्ठ-कम्म-दिढ-वन्ध-तोडणा जय जय कोह-लोह-अण्णाण-माण-दुम-पन्ति-मोडणा ॥ ३ ॥ जय जय भव्व-जीव संहार-समुद्दहो तुरिउ तारणा जय जय हय-तिसल्ल-जय-जाइ-जरा-मरणइँ निवारणा ॥ ४ ॥ जय जय सयल-विमल-केवल-णाणुज्जल-दिव्व-लोयणा जय जय भव-भवन्तरावज्जिय-दुरिय-मलोह-चोयणा ॥ ५ ॥ जय जय तिजय-कमल-वय-दय-णय-णिरुवम-गुण-गणालया जय जय विसय-विगय जय जय दस-विह-धम्माणुवालया ॥ ६ ॥ तुहुँ सव्वण्हु सव्व-णिरवेक्खु णिरञ्जणु णिक्कलो परो । तुहुँ णिरवयवु सुहुमु परमप्पउ परमु लहु परंपरो ॥ ७ ॥ तुहुँ णिल्लेउ अ-गुरु परमाणुउ अक्खउ वीयरायओ । तुहुँ गइ मइ जणेरु सस मायरि भायरि सुहि सहायओ ॥ ८ ॥