Book Title: Bruhad Nirgranth Stutimani Manjusha Part 01
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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श्रीपउमचरिय-अंतर्गता (प्रायः ईस्वी दशम शताब्धाः पूर्वार्धम्)
(.............. छन्दः)
लोयग्गहाँ सिव-सासय-सोक्खहो । जहिँ मुणिवरहुँ कोडि गय मोक्खहो ॥ १ ॥ सा कोडि-सिल तेहिँ परिअञ्चिय । गन्ध-धूव-वलि-पुप्फेहिँ अञ्चिय ॥ २ ॥ दिण्ण स-सङ्ख पडह किउ कलयलु । घोसिउ चउ-पयारु जिण-मङ्गलु ॥ ३ ॥ 'जस दुन्दुहि असोउ भामण्डलु । सो अरहन्तु देउ तउ मङ्गलु ॥ ४ ॥ जे गय तिहुयणग्गु तं णिक्कलु । ते सिद्धवर देन्तु तउ मङ्गलु ॥ ५ ॥ जेहिँ अणङ्गु भग्गु जिउ कलि-मलु । ते वर-साहु देन्तु तउ मङ्गलु ॥ ६ ॥ जो छज्जीव-णिकायहँ वच्छलु । सो दय-धम्मु देउ तउ मङ्गलु' ॥ ७ ॥ एम सु-मङ्गलु उच्चारेप्पिणु । सिद्धवरहुँ णवकारु करेप्पिणु ॥ ८ ॥ जय-जय-सद्दे सिल संचालिय । रावण-रिद्धि णाई उद्दालिय ॥ ९ ॥ मुक्क पडीवी करयल-ताडिय । दहमुह-हियय-गण्ठि णं फाडिय ॥ १० ॥ कोडि-सिलए संचालियए दहमुह-जीविउ संचालि( य) उ । णहे देवेहिँ महियले णरेंहिँ आणन्द-तूरु अप्फालि( य) उ ॥
(१) रह-विमाण-मायङ्ग-तुरङ्गम-वाहणे । विजउ घुटु सुग्गीवहो केरए साहणे ॥ १ ॥

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