Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Author(s): Rajmal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 2
________________ 'भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ' ग्रन्थमाला का यह पांचवाँ भाग कर्नाटक के विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थों, ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक जैन स्थलों तथा जैन संस्कृति और कला की उस चमत्कारी उपलब्धि से सम्बन्धित है जिसने शताब्दियों से जन-जन की श्रद्धा को संपुष्ट किया है। ग्रन्थमाला के पूर्व प्रकाशित चार भागों में उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा; मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के दिगम्बर जैन तीर्थों का वर्णन है, जिनमें अनेक तीर्थों की पहचान सिद्धक्षेत्र, कल्याणकक्षेत्र, अतिशयक्षेत्र आदि के रूप में विख्यात है। दक्षिण के जैन तीर्थों के विषय में दृष्टि को अधिक विस्तार देना होगा क्योंकि यहाँ श्रद्धाबन्दना निर्माण और कला के विभिन्न माध्यमों में रूपायित हुई है। गोम्मटेश्वर बाहुबली की महिमा को पुराणों और महाकाव्यों ने अमर बनाया है, उनको कला के आचार्यों ने पर्वत-खण्ड में मनमोहक रूप देकर मनुष्य की श्रद्धा को साक्षात् जीवन्त बना दिया है। आचार्यों के आचार्य भद्रबाहु स्वामी, भगवान कुन्दकुन्द देव, सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र, वीरमार्तण्ड चामुण्डराय, महिमामयी काललदेवी, दानशीला बक्कनदेवी, सौन्दर्य और साधना की तेजस्विनी मूर्ति पट्टमहादेवी शान्तला-इन सबके आख्यानों ने मन्दिरों, गुफाओं, मूर्तियों, मठों, शिलालेखों, मानस्तम्भों, वसदियों, भित्तिचित्रों में अपना इतिहास प्रतिष्ठापित किया है, अपना रूप प्रतिबिम्बित किया है। प्रकृति ने उल्लसित होकर मानो दोनों हाथों से अपना वैभव यहाँ बिखेरा है। नदी, झरने, कुण्ड, वृक्ष, लताएँ, शीतल-सुरभित समीर, सुगन्धित द्रव्य तथा संसार के यात्रियों के लिए पर्यटन-स्थली-सबकुछ यहाँ है। पग-पग तीर्थ, कण-कण पवित्र ! इस ग्रन्थ को तीर्थक्षेत्र कमेटी ने अपना उपासनाकूसम माना है। आप इसे पढ़कर आह्लादित होंगे, अपनी तीर्थयात्रा को सुगम और उपयोगी बना सकेंगे, इस आशा से यह पाँचवाँ भाग पाठकों को समर्पित है। इस ग्रन्थमाला का अगला अर्थात् छठा भाग, जिसका सम्बन्ध तमिलनाडु, आन्ध्र और केरल से है, प्रकाशनार्थ नियोजित है।

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