Book Title: Bharat ka Bhavishya
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 2
________________ भारत का भविष्य तरफ ही देखता है। आगे की तरफ देखने में उसे डर भी लगता है, क्योंकि आगे सिवाय मौत के, सिवाय मरने के और कोई दिखाई बात पड़ती भी नहीं। जवान आदमी भविष्य की तरफ देखता है। और जो कौम भविष्य की तरफ देखती है वह जवान होती है। जो अतीत की तरफ, पीछे की तरफ देखती है वह बूढ़ी हो जाती है। यह हमारा मुल्क सैकड़ों वर्षों से पीछे की तरफ देखने का आदी रहा है। हम सदा ही पीछे की तरफ देखते हैं, जैसे भविष्य है ही नहीं; जैसे कल होने वाला नहीं है। जो बीत गया कल है वही सब कुछ। यह जो हमारी दृष्टि है यह हमें बूढ़ा बना देती है। अगर हम रूस के बच्चों को पूछे तो वे चांद पर मकान बनाने के संबंध में विचार करते मिलेंगे। अगर अमेरिका के बच्चों को पूछे तो वे भी आकाश की यात्रा के लिए उत्सुक हैं। लेकिन अगर हम भारत के बच्चों को पूछे तो भारत के बच्चों के पास भविष्य की कोई भी योजना, भविष्य की कोई कल्पना, भविष्य का कोई भी स्वप्न, भविष्य का कोई उटोपिया नहीं है। और जिस देश के पास भविष्य का कोई उटोपिया न हो वह देश भीतर से सड़ना शुरू हो जाता है और मर जाता है। भविष्य जिंदा रहने का राज, भविष्य के कारण ही आज हम निर्मित करते हैं। भविष्य के लिए ही आज हम जीते और मरते हैं। जिनके मन में भविष्य की कोई कल्पना खो जाए, उनका भविष्य अंधकारपूर्ण हो जाता है। लेकिन इस मुल्क में न मालूम किस दुर्भाग्य के क्षण में भविष्य की तरफ देखना बंद करके अतीत की तरफ ही देखना तय कर रखा है। हम अतीत के ग्रंथ पढ़ेंगे, अतीत के महापुरुषों का स्मरण करेंगे। अतीत की सारी बातें हमारे मन में बहुत स्वर्ण की होकर बैठ गई हैं। बुरा नहीं है कि हम अतीत के महापुरुषों को याद करें। लेकिन खतरनाक हो जाता है अगर भविष्य की तरफ देखने में हमारी स्मृति बाधा बन जाए। कार हम चलाते हैं तो पीछे भी लाइट रखने पड़ते हैं, लेकिन अगर किसी गाड़ी में सिर्फ पीछे ही लाइट हो और आगे लाइट हम तोड़ ही डालें, तो फिर दुर्घटना के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता। गाड़ी में भी रियर व्यू मिरर रखना पड़ता है, एक दर्पण रखना पड़ता है जिसमें से पीछे से दिखाई पड़े। लेकिन डाइवर को हम पीछे की तरफ मंह करके नहीं बिठा सकते। अतीत का इतना ही उपयोग है जितना रियर व्य मिरर का एक कार में Page 2 of 197 http://www.oshoworld.com

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