Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ आपमें जो अदभुत सूझ अपूर्व लिपिविज्ञता और गहरी साहित्यप्रियता पाई जाती है वह नीतिशास्त्र में दिखाए हुए "विविध देशाटन, अधिकाधिक विद्वानों से परिचय व मित्रता एवं अनेकानेक शास्त्रों का चिन्तन मनन व परिशीलन का" स्थिर परिपाक है। चरमतीर्थपति भगवान महावीर देव का अनुशासन ने ही आपको आत्मबल. आत्मबोध व आत्मनिष्ठा दी है और दे रहा है। सबसे बढ़कर आपकी श्री जैनशासन में गहरी निष्ठा है उसका एवं आपके सभी गुणों का मैं गुणानुराग रूप से अनुमोदन करता हूँ और साथ ही धर्मलाम रूप आर्शर्वाद देता हूँ। -विजयकनकरत्न सूरि श्री भंवरलाल जी नाहटा व्यक्ति नहीं. अपने आप में एक संस्था हैं। उनकी बहुमुखी मांगलिक प्रवृत्तियों से समाज और राष्ट्र "सत्यं शिवं-सुन्दरम्" से समलंकृत हुआ है। सरस्वती और लक्ष्मी के वरदान से अभिषिक्त श्री नाहटाजी के इन्द्रधनुषो व्यक्तित्व में कवि की कल्पना, इतिहासकार की अनुसंधान प्रवृत्ति, पुरातत्ववेत्ता की सूक्ष्म दृष्टि, लिपि पण्डित की कुशाग्रता, चित्रकार की सौन्दर्य-परख, दार्शनिक की चिन्तनशीलता एवं समाज सुधारक की सेवा-भावना के सप्तरंग जग-मगा रहे हैं जिनकी समुज्व ल प्रमा मानव को उद्यमशील बनने की प्ररेणा देती है। ये महाशय किसी महाविद्यालय में नहीं पढ़े, फिर भी ये अपने उद्यम से इतनी ऊँचाई को छू सके। इनका जीवन नवपीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। प्रतिमा जन्मजात होतो है, वह सुअवसर पाकर प्रकट होती है। पुण्योदयवेला में मानव की प्रतिमा श्रम साधना से प्रकट होकर सृष्टि का मंगल विधान करती है। श्री भंवरलाल जी नाहटा के विकास का भी यही रहस्य है। इसलिए पुण्य-संचय हेतु शुभकर्म करना चाहिए। यही वह सम्पत्ति है जो मानव जीवन को प्रतिभा सम्पन्न बनाती है। श्री भंवरलालजी नाहटा का जीवन-दुकूल दो सुन्दर धागों से बुना हुआ है । एक धागा है विनम्रता, और दूसरा है श्रम । विनय और श्रम से जीवन सार्थक सफल और सुखी बनता है। जीवन एक कला है। जीवन को सफल बनाने के लिए विवेक रूपी कला को आवश्यकता है। श्री भंवरलाल जी नाहटा ने विवेक-पट पर प्रतिभा की तूलिका से मानवता का चित्र अंकित करके यह बता दिया है कि जीवन में धन वैभव का महत्व नहीं, जीवन तो श्रम से सिंचित विनय और अकिंचनता के रजकणों में फूल के समान खिलकर ही मानवता की सुगंध बिखेरता है। इससे जगत् का प्रांगण महकता है उनके द्वारा अनेक मंगल श्रावक रत्न श्री भंवरलालजी नाहटा की दीर्घायु के लिए हमारी शुभकामना। कार्य सम्पन्न हों, यही शुभाशीष । -विजय इन्द्रदिन्न सूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 450