Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth
Author(s): Ganesh Lalwani
Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti

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Page 17
________________ जाय तो आज दूसरों में जितनी दीक्षाएं हो रही हैं अपने में भी हो सके । इन सब बातों को लिखना व्यर्थ है। आप लोग अच्छी तरह जानते हैं |"सं० २०४० का माघ सुदी १४ । उपर्युक्त पत्र श्री नाहटा जी की विस्तृत इतिहासज्ञता पर संक्षेप में अच्छा प्रकाश डालता है। इसी ढंग के मेरे पास उनके और भी पत्र संग्रहित हैं। स्थानाभाव के कारण उन्हें प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। इसी तरह नाहटा जी का प्राचीन लिपि ज्ञान भी अत्यन्त विस्तृत है। इतिहास आदि के ज्ञाता तो बहुत ' मिल जाते हैं किन्तु प्राचीन लिपियों के ज्ञाता अल्प ही हैं। इसीलिए मैं नाहटा जी के विस्तृत ज्ञान में लिपि पक्ष का ज्ञान विशेष महत्वपूर्ग समझता हूँ। वस्तुतः अन्य तथ्यों का ज्ञान तो अनेक माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु विभिन्न लिपियों का ज्ञान तो शास्त्रों के मन्थन से ही होता है जो कि अत्यन्त श्रमसाध्य कार्य है। नाइटा जी तो किशोरावस्था से ही इस ओर दिलचस्प रहे, उन्होंने अनेक प्राचीन ग्रन्थों की देवनागरी लिपि में पांडुलिपियाँ की, अनेक स्थानों में जाकर पुरातात्विक शिला-लेखों आदि को पढ़ा। यही नहीं, उन्होंने उन्हें पत्रपत्रिकाओं. पुस्तकों आदि के माध्यम से प्रकाशित भी किया । श्री नाहटा जी के जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग आये, जब उन्होंने अपने कुशाग्र लिपि ज्ञान के द्वारा बड़ेबड़े भाषा वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित कर दिया । डा० सुनीतिकुमार चटर्जी, पुरातत्वाचार्य मुनि जिन विजय, पं० राहुल सांकृत्यायन, पं० गौरी शंकर ओझा, पुरातत्व वेत्ता अगरचन्द नाहटा प्रभृति विद्वान आपके इस ज्ञान के सदा प्रशंसक रहे। जिन लिपियों को अन्य विद्वान पढ़ने में शक्य न हो सके उनको श्री नाहटा जी ने एक सुदीर्घ सीमा तक पढ़ने में सफलता प्राप्त की। स्थान परिवर्तन, सनय परिवर्तन और लिपि लेखक परिवर्तन होते हुये भी अवैज्ञानिक वर्णमाला को वैज्ञानिक वर्गमाला की तरह नाहटा जी द्वार। पढ़ लेना उनके गम्भीर ज्ञान एवं चिर अभ्यास का सूचक है । मुझे भी प्राचीन लिपियों का जो यत् किंचित ज्ञान है वह वास्तव में श्री नाहटा जी की ही देन है । यहाँ मैं श्री नाहटा जी के द्वारा ही उनके हाथों से लिखित प्राचीन लिपियों का अभिलेख प्रस्तुत कर रहा हूँ प्र::LA 2 प्र. + AAW db EPhCOPE I h 20DOE 000४ १Job UCjeuni.na १२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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