Book Title: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Granth Author(s): Ganesh Lalwani Publisher: Bhanvarlal Nahta Abhinandan Samaroh Samiti View full book textPage 8
________________ श्रीमान् नाहटाजी जैन समाज के गोरव हैं, खरतरगच्छ के रत्न हैं । नाहटाजी जैसे बहुत कम विद्वान और शास्त्र के ज्ञाता अपने समाज में हैं अतः उनका अभिनन्दन जैन समाज के लिये गौरव का विषय है। नाहटाजी जब-जब मुझे मिलते तब अवश्य उनसे मुझे शास्त्र, इतिहास आदि के विषय में कई विशेषताएँ जानने को मिलती और इससे नाहटाजी के विशाल ज्ञान का परिचय मिलता है। जिश्वर भगवान एवं दादा गुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ कि नाहटाजो को साहित्य सेवा करने का अधिकाधिक बल प्राप्त हो। -जयानंद मुनि श्री भंवरलालजी नाहटा ने अपना जीवन इतिहास, पुरातत्व, शोध, सर्जन के माध्यम से अपनी आत्मा को समर्पित किया है । यह उनके जीवन की मौलिक विशेषता है। ज्ञानी होने के कारण निश्चित ही इनके जीवन को कीति, यश. मान-सम्मान की सौरभ मिली है, फिर भी ये स्वयं उस हवा से अपरिचित/अछूते रहे हैं। यही कारण है कि आज वे विद्वानों की दुनिया के चमकते होरे हैं । ऐसे विद्वानों का अभिनन्दन करना, समाज का कर्तव्य है । निश्चित ही उनका अभिनन्दन प्रेरणा का दीपस्तंभ बनकर दिशा बोध देगा। मैं उन्हें धर्मलाभ की शुभाशीष प्रदान करता हूँ। मुनि मणिप्रभसागर भारत के माने हुए विद्वानों की दृष्टि में आप अवश्य मां सरस्वती के वरद पुत्र हैं। आपकी प्रज्ञा सहज सरल ग्राहय और अनुकरणीय है। आपकी प्रकृति में स्वाभाविक रूप से ही सुजनता कुलीनता व निरभिमानता विराजित है। आप में परंपरा निर्वाह और कर्तव्य-निष्ठा दोनों का अद्भुत संमिश्रण है। आपकी जागरूकवृत्ति वैयक्तिक मतमतान्तरों, दार्शनिक विवादों और स्वैच्छिक विधिनिषेधों से परे रही है। अध्ययन चिन्तन मनन और निदिध्यासन आपका जीवन का स्थिर चित्र है। आपमें धर्म का जो गौरव है वह श्री जैन शासन का अपना, गुरुदेव का. सुयोग्य परिवार का एवं पूर्वजन्म के पुण्य का ही फल है। आप आशुकवि व पुरातत्वप्रेमी भी हैं। आपकी अधिकतर अभिरुचि भाषाशास्त्र और लिपि विज्ञान में है। आप आधुनिक और प्राचीन परंपरागत भाषाओं व लिपिओं को पढ़ने, समझने में बहुत माने हुए विद्वान हैं । पुरानी अनेक प्रतिमा, चित्र-वस्तु और अति मूल्यवान् प्राचीन ग्रन्थ आपके बीकानेर के संग्रहालय में है। आपका प्राचीन शिलालेखों से इतिहास संशोधन प्रेन भी बहुत प्रशंसनीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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