Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 09
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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૩૫ર
सत्ताए सहु जीव महावीर, व्यक्ति भिन्न भिन्न धारो; परभाव उदियक वीरपणुं त्यजी, वीर प्रगटता भाळो.
पल. ७ आप महावीररूप बनीने, कर्म कलंक निवारो। बुद्धिसागर आतम महावीर, आनन्द ज्ञानाधारो. पल.८ महावीर शरण कयु अक हारूं.
आशावरी. महावीर ! शरण कयु एक हारूं, भव दावानळ बळतो उगारो; पल पल तुज संभार. __ महावीर. रागने रोष अज्ञानथी जगमां, जीवq लाग्युं अकाउं; दर्शन ज्ञान चारित्रनु जीवन, लाग्युं प्यारामां प्यारं.
महावीर.१ विषयोतणा रस विष सम जाण्या, जीवन एबुं नठारं; आतम आनंद अमृतरसथी; जीवq सहज छे सारं.
महावीर. २ उदयिकभावे परिणमवू नहीं, उपयोगे निर्धायुः क्षयोपशम उपशमने क्षायिक, भावमां जीवन वाळ्युं.
महावीर.३ मनवाणी पुद्गल जडजगमां, मान्युं न म्हारं त्हाः । तुज मुज आतमरूप छे एक ज, पल पल दिलमां धारूं.
महावीर. ४ कर्म शुभाशुभ उदयमां समता, धारी जीवन गाडं; बुद्धिसागर महावीर प्रभु तुज, वाटमा वेगे चालुं.
महावीर. ५ समाप्त.
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