Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 09
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 441
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ धन्य धन्य अनगार मुनिवर महा हितकारी, करता कर्म विनाश भावथी समता धारी, मुनिवर महा दयाल प्रेमथी वंदन कोजे, खमासमण बेहाथ जोडीने भावे दीजे, निर्मल मुनिगुण गायतां कर्म कलंक कपाय छे, संयमनीअनुमोदनाथी आतम निर्मल थाय छे. ॥६॥ धन्य धन्य अवतार मुनिवर दर्शन पावे, प्रगटे पुण्योदय तदा मुनिश्रद्धा थावे, धन्य धन्य अनगार सदा संयम आराधे, पंचाचार प्रवीण ध्यानथी मुक्ति साधे, श्राद्ध मुनिनु आंतरं सर्षव मेरुः जेटलं, वंदो पूजो भव्य लोका वर्णन करीए केटलं. ॥६॥ उत्तराध्ययन मझार आंतरं एवं भाख्यु, देश.. सर्व विरतिथकी अंतर ए दाख्यु, जोजो श्री मूयगडांग सूत्रमा साधु सारा, जोजो आचारांग सूत्रमा जे आचारा, दशवकालिक सुत्रमा साधु महिमा सांभळेो, सत्य पामी जूठ त्यागी मेला मननो आमो. ॥६॥ शासनना सुल्तान सूरिवर वीरनी पाटे, समजी सत्य स्वरूप चालवू सवळी वाटे, स्वामि सेवक भाव मुनिवर श्राद्ध सुहायो, परमेष्ठिमा मुनि गण्या दीलमा ए आया, जोजो श्री नवकारमा मुनिवर मोटा लेखिया, अदाइज्जेसुपाठमा ते पूज्य परगट पेखिया. ॥६४॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486