Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 09
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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५११ प्रतिक्षण आउखो घटे जी, न घटे पातकबुद्धि योवन वय जातां वधे जी, विषयाभिलाष वृद्धि; ज०१९
औषध तनु रखवालवा जी, सेव्या आश्रयकाडि: पिण जिनधर्म न सेविया जी, ओ औ माह मरोडि.ज०२० जीव कर्म भव शिव नहीं जी, विटमुख वाणीरे पीध; तुज केवलरवि उगम्ये जी, आप संभाळ न कीध. ज०२१ पात्र भक्ति जिन पूजना जी, नवि मुनिश्रावकधर्म; रत्न विलापपरे को जी, मुन माणसना जम्म. ज०२२ जैनधर्म सुखकर छते जी, सेव्यु विषय विभाव; सुरमणि सुरघट ईहना जी, ऐ ऐ मूढ स्वभाव. ज० २३ भोगलील ते रोग छे जी, धन ते निधन समान: दारा कारा नरकनी जी, न विचारूं ए निदान. ज० २४ साधु आचार न पाळीयो जी, न कों पर उपकार; तीर्थ उद्धार न नीपनो जी, ते गयो जन्मारो हार.ज०२५ दुर्जन वचन खमे नही जी, श्रुतयोगे न विरागः लेश अध्यातमनवि रम्यो जी,किम लहस्युं भवताग.ज०२६ न कर्यों धर्म गये भवेजी, करवो पण अतिकष्टः वर्तमान भवरंगना जी, तिण तीने भव नष्ट. ज० २७ प्रभु आगळ शुं ? दाखवू जी, मुज आश्रय परचार; तीनकाल जाणग अछोजी, तरीये तुज आधार. ज. २८ भद्रक मुनिवुद्धं नमैं जी, तेमां हरवुरे आप: मुनिपद हंस करुं नहीं जी, ए सबलो संताप. ज० २९ जिनमतवितथा प्ररूपणा जी, करतां न गणोरे भीतिः जस ईद्री सुख लालचे जी, कोथु काल व्यतीत. ज. ३०
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