Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 09
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 482
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०९ as Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ श्रीमद् देवचन्द्रजी कृत श्री सिद्धाचलगिरि मंडन श्री आदिजिन विनतिरूप स्तवन प्रारंभः रत्नाकर पच्चीशो अनुवादरूप. सुण जिनवर शत्रुंजय धणोजी, दासतणो अरदास ए-राग. श्रेय श्रीरति गेहलोजो, नरसुरपतिनतपाय; सर्वजाण अतिशय निधिजी, जय उपयोगी अमाय. १ जगतगुरु विनतडो अवधार. (ए टेक ) जग आधार कृपामयी जी, निष्कारण जगबंधु; भवविकारगद टाळवा जी, वैद्य अच्छे गुणसिंधु ज०२ जाण भणी जे भाषवुं जी, ते तो भालिमभाव; पिण अशुद्धता आपणी जी, विनवीये लहि दाव, ज०३ मावित्र आगळ बालके जी, इयुं लीलें न कहाय; साधुं पश्चात्तापथी जी, निज आशय कहिवाय. ज०४ दान शील तप भावना जी, जिन आणाओं न कीध; वृथा भम्यो भवसागरे जी, आतमहित नवि लीध. ज०५ क्रोध अगनि दाधो घणुं जी, लाभ महोरग दष्टः मान ग्रस्यो माया कळ्यो जी, किम सें परमेष्टि. ज०६ हित न कर्यो में परभवं जी, इहां पण नवि सुख चुंप; हे प्रभु ! अमशत भव 'कथा जो, केवल पूरणरूप. ज०७ १ कर्या. For Private And Personal Use Only

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