Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 09
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 456
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૮૩ सदुपदेशे चित्त सदा जे परउपकारी, पंचम आर मझार के निर्मल संयमधारी; वशमा राखे चित्त विकल्पो सघळा वारी, पिण्डस्थादिक ध्यान धरे मनटुं त्यां ठारी: सर्वोपाधि त्यागीने अनुभवामृत चाखता, यथा नाम तथा गुणा ए वाक्य साचुं राखता. ॥१२॥ समयोचित व्यवहार धर्मना जे छे धोरी, द्रव्यादिक अनुयोग ज्ञाननी हाथे दोरी; श्रोतायोग्य सुपात्र देशना तेवी देवे, उपनीतादिक भेद ज्ञानथी समजी कहेवे; गीतार्थज्ञानी साधुने वंदन वार हजार छे, जाण्युं तेनुं साच समजो धन्य धन्य अनगार छे. ॥१२२॥ भाखे नहि परमर्म मुनिवर संयमधारी, देवे नहि पर आळ मुनिवर निंदावारी; पडे प्राण पण निंदा परनी कदी न करतो, धरी त्याग वैराग्य मुनिवर संयम वरतो; परनां छिद्र न खोलतो महामुनि गंभीर छे, जीवन गाळे ज्ञानमां ते धर्मध्याने वीर छे. ॥१२३।। क्षांत्यादिक दश धर्म धरे मुनिवर वैरागी, स्वप्ने पण रामाना मुनिवर थाय न रागी: एकचित्तथी शीयळ पाळे समतासंगी, आत्मस्वभावे स्थिर मुनि अनुभवना रंगी; दुर्लभ मुनिवर दर्शने भविकजीव लोभाय छे, साधुसंगत सेवनाथी जन्मफेरा जाय छे. ॥१२४॥ For Private And Personal Use Only

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