Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धिनी बहार छे छतां एटलुं तो मानवू पडशे के लांची काळ सुधी ए अक्षरदेह परोपराकार्थ टकी शके छे. प्रत्यक्ष अने अप्रत्यक्षोपदेश पण उभय प्रकारनो होय छे. एक गद्यमां अने बीजो पद्यमां अक्षरोने अमुक प्रकारनी गोठवणी शिवाय मात्र रसपूरित भावार्थवालु जे लखाण ते गद्य कहेवाय छे. अने वर्णमात्राने अमुक प्रकारनी गणमात्राए बद्धकृतिमां लखेल लेख पद्य कहेवाय छे. आ बेय अक्षरदेह स्वरूप छे. पण बुद्धिनी लालित्यता भाषा गौरव ने हृदय पटपर छाप पाडनार भाव पद्यमां, गद्य करतां अधिक अंशे समायेल छे. साधारण वार्ताओ करतां कवि लोकोए लखेला कविताओना ग्रंथो केवी अस्तित्वता भजवी उन्नतता भोगवे छे ए कोनी जाण बहार छे. पद्यमां पण बे भेद छे. पिंगळ पद्म, शार्दूलविक्रीडित, स्रगधरा, शिखरिणी आदि वर्ण मेळना छंदो. ए प्रथम प्रकार छे. अने रागरागणीमां भजन कीर्तनो, पद ख्याल, ठुमरीओ, गजलो ए पद्यनो बीजो प्रकार छे. पहेला प्रकार करतां पण काळबळ, देशनी स्थिति रीति मानवनी मनोविचारणाओने अवलोकी, आ पद्यना बीजा प्रकारने अमो प्राधान्य मानीशं. कारण जे भणेल वर्ग होय छे. अने तेमां पण जेमणे पिंगळ वगेरेनो अभ्यास करेलो होय छे उपरांत रस अलंकारना जेओ ज्ञाता होय छे तेमने प्रथम मार्ग सरस मालुम पडशे पण हिंदनी हालनी प्रजा अधमथी ते उत्तम वर्ण सुधी संगितपर जेटली मस्त छे. तेटली प्रथम प्रकारमां गौण अंशे छे. __मानव तो शुं पण सर्प, हरिण, आदि पशु जातिमा संगीत साम्राज्य भोगवे छे. सुंदर चंद्रमानी पवित्र श्वेत छाया अने पवननी सुखद लहरिओमां वीणानादे आरंभेल रागध्वनि हरिणनां For Private And Personal Use Only

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