Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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कविता पिंगळमां बतावेल छंदोमां छे. ते शुद्ध व्यवहारने अति उपयोगी छे. कारण दया, विवेक, न्याय, सत्य आदि लक्षणो आवाळवृद्ध सर्व दर्शनवाळाने उपयोगी छे ए संबंधीनाज लेखो छे. भाषा सरल छे, रसहृदयभेदक छे उपरोक्त वैराग्य. सुख दुखमा समभाव, निंद्रा त्याग, स्वार्थ स्वरूप, परमार्थ स्वरूप, दान स्वरूप, कपट स्वरूप, उपकार माहमा, आदि अनेक उपदेशो समाया छे. वळी योग मार्गमा पोते निष्पक्षपाती होवाथी, योग महिमाना विषयोनां तेमनां भजनो बहुज आनंद आपे छे. ४४ मा पत्रे योग माटे थोडा झूलणा छंद छे. तेमांथी अवकाश स्थळ संकोचने लेइ एक बे टांकी बताएं छु.
योग विद्यातणुं धाम चेतन प्रभु, शक्ति सिद्धो समी रही प्रकाशी योगविद् मानवी चित्तमां ध्यानथी,
पिण्ड ब्रह्माण्ड भावो विलासी. चक्र षद् भेदवां वायुनां पिण्डमां, गगनगढ चालवु वंक नाले ज्योति जळ हळ अति शोक चिन्ता नथी, हंसलो शान्ति सुख मांहि म्हाले. पिण्ड ब्रह्माण्डनी ऐक्यता आत्ममां, शुद्ध उपयोगथी जेह जागे; अष्ट सिद्धि सदा हस्त जोडी रहे, चित्त रंगाय नहि बाह्य रागे, अलखनी धूनमा भासता दिन मणि, भक्ति उत्साहथी यत्न धारो; बुद्धिसागर सदा ज्योतिमा जागजे,
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