Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तथा ९ मान्यता थोडा समयमां एटली थइ छे के हरकोई धर्मवाळा पण कलबमां, भजनमां, अने एकांतमां, उत्साहमा एने उच्चरता जणाय छे. विजापुर वगरेमां वगडाओमां पण लोको हरतां फरतां वैराग्यथी गाय छे. ए शिवाय चिदानंदजी तथा आनंदघनजीनां प्रेमनी मूर्तिस्वरूप थोडां भजनो पण ए भागमा कर्ताए स्नेहे आकर्षा दाखल करेला छे. कीन गुन भयोरे उदासी भमरा कीन गुन भयोरे उदासी. आनन्दघनजी मत कोइ प्रेमके फन्दपरे परत सो निकसत नाही. प्रेमके कारन पपैआ पुकारत दीपक पतंग जरे मत० * Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * आनन्दघन प्रभु आय मीलो तब तुम विरहकी पीरटरे मत० For Private And Personal Use Only मत० आनन्दघनजी. आनदघनजी जैनोमां एक योगी महात्मा थइ गया छे, श्रीमान् बुद्धिमागरजीने अमो जैनोमां तो आनंदघन अने चिदानन्दनी जोडमां भेळवी ए त्रणनी त्रीपुटी करी आल्हादीए छीर. कारण के उपरोक्त बन्ने महात्माओना विचारो स्वात्मनिष्ठतानी कविताओ मां क्वचित् भिन्न जणाता नथी बीजो भाग हालनी गुज्जर भाषामां रच्यो छे ने घणीखरी

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