Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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तथा
९
मान्यता थोडा समयमां एटली थइ छे के हरकोई धर्मवाळा पण कलबमां, भजनमां, अने एकांतमां, उत्साहमा एने उच्चरता जणाय छे. विजापुर वगरेमां वगडाओमां पण लोको हरतां फरतां वैराग्यथी गाय छे. ए शिवाय चिदानंदजी तथा आनंदघनजीनां प्रेमनी मूर्तिस्वरूप थोडां भजनो पण ए भागमा कर्ताए स्नेहे आकर्षा दाखल करेला छे.
कीन गुन भयोरे उदासी भमरा कीन गुन भयोरे उदासी. आनन्दघनजी
मत कोइ प्रेमके फन्दपरे
परत सो निकसत नाही. प्रेमके कारन पपैआ पुकारत दीपक पतंग जरे
मत०
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आनन्दघन प्रभु आय मीलो तब तुम विरहकी पीरटरे
मत०
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मत०
आनन्दघनजी.
आनदघनजी जैनोमां एक योगी महात्मा थइ गया छे,
श्रीमान् बुद्धिमागरजीने अमो जैनोमां तो आनंदघन अने चिदानन्दनी जोडमां भेळवी ए त्रणनी त्रीपुटी करी आल्हादीए छीर. कारण के उपरोक्त बन्ने महात्माओना विचारो स्वात्मनिष्ठतानी कविताओ मां क्वचित् भिन्न जणाता नथी
बीजो भाग हालनी गुज्जर भाषामां रच्यो छे ने घणीखरी

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