Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२ बीजा नवा कोण जाणे केटला घणा ग्रंथ थाय एम छे.
त्रीजा तथा वोथामां तो मात्रं अलख खूमारीज छे. एक विद्युत् चमत्कारमां जेम मोतिहार परोववा जेटली एकाग्रता अने बाह्यवृत्तिनी निवृत्ति जोइए तेटलीज निवृत्ति लेइ स्वात्मलक्ष्यमां कर्ता चाल्या जाय छे जाणे एक मुक्त महद् पुरुष होय नहि ? उपरना बे करतां आबे भाग वधारे हृदयाकर्षनार छे भाषा उच्च छे. देह तंबुर विषे एक बे वाक्यो. देह तंबुरो सात धातुनो रचना तेनी बेश बनी इडा पिंगळा अने सुषुम्णा नाडिनी शोभा अजब घणी.
देह तंबुरो अलख धुनमां, परा पश्यंतिथी बागे; जाग्रत् तुर्यावस्थामांहि, चेतन यथाक्रमे जागे. देह तंबुरो बगाडनारो, चिदानन्द घटमां जागे; बुद्धिसागर अलख धूनमां, अनंत सुख छे वैराग्ये.
आ आत्मभावनी उच्चदशानी पराकाष्टा कहीए तो चाले. आत्मखुमारी, योगविषय, तत्वज्ञान, वगेरेनां हेडींगवाळी कविताओ अति उत्कृष्ट छे.
अमो हद बहार जइ वखाणता नथी. पण हृदय पूर्वकनी लागणी साथ कहीएछीएके आत्मज्ञान स्वदेशोदय, व्यवहारोदय माटे सर्वे जणने ए भाग बहु उपयोगी छे. जैनोना तीर्थंकरोनी स्तुतिओ एमां समायली छे ते जैनोने अति उपयोगी छे. पण दया, दान तपश्या, ज्ञान भक्ति, वैराग्य, योग आदिना विषयो लखवा निर्लोभताए जनकल्याणमाटे ज ए विरक्तपुरुषे जे प्रयन कर्यो छे तेने धन्यवाद आपीएछीए, पुस्तकोनुं मूल्य एटलं
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 308