Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04 Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ पूज्य जैनसाधु श्रीमद् बुद्धिसागरजी अने तेमनो काव्य संग्रह. हरको मनुष्यने सुख प्राप्त करवानी अभिलापा होय छे. अने ए सुख माटेज प्रत्येक प्राणीओ विविध प्रकारनी प्रवृत्तिमां प्रवृत्त थता जणाय छे, तेमां ते मार्गना पटंतरे आवी कोइ विजयवंत निकळता नथी तो एक बाजुए विरल विरल पुरुषो सत्तुखमां निमग्न थयेला होय छे. विशेष स्तुतिपात्र एनेज मानी शकाय के, जाते सत्सुखानन्दी होइ बीजानुं दुःख टाळवा प्रवृत्ति करे छे. हुं बीजाने सुख आपीश एम धारी घणा माणसो पोताने प्राप्त थयेल साधनो पोताथी अधः स्थितिवाळाने पुरां पाडवा जाय छे. राजाओ, शेठीआओ, अने धनवंत जनो, धनलक्ष्मी एज सुखनुं साधन माने छे अने एथीज बीजा सुखी थशे एम विचारी धनादिकथी अनेक प्रकारे साह्य आपे छे पण आ मार्ग मध्यम छे. कारण के धनादिक पदार्थ मात्र आजन्मपर्यंतने माटे पण अनिश्रयात्मक सुखस्वरूप होय छे. ए करतां महात्मा पुरुषो उपदेशादियी हृदयपूर्वकनुं शुद्ध अध्यात्मज्ञानथी विभूषित् ज्ञान आपे छे. ए ज्ञानथी उत्पन्न थयेल निजानंद स्वरूप सुख कदी एटले जन्मांतरां पण नष्ट यतुं नथी. ए सर्व कोइ मार्गवाळा माने छे. उपदेश उभय प्रकारे आपी शकाय छे. प्रत्यक्षपणे, अने अप्रत्यक्षपणे, ज्यां सुधी शरीर आलोकपर विचरी शके छे. त्यां सुधीना माटेज प्रत्यक्षपणे उपदेश आपी शकाय छे. पण ग्रंथादिक बनावी अविचळ अक्षर देहथी आपवामां आवतो अप्रत्यक्षपणे उपदेश क्यां सुधी लांबी काळ रही शके ए कहेतुं मानवनी For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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