Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 14
________________ वीतराग है, स्वाधीन है। किसी भी प्रकार की उपाधियां उसे स्पर्श तक नहीं करती हैं। ऐसी अवस्था में ईश्वर पुनः जन्म ग्रहण करके अवतीर्ण नहीं हो सकता। इस प्रकार 'असंग' अर्थात् निर्विकार होने के कारण ईश्वर अनन्त है - उसकी ईश्वरता का कभी अंत नहीं होता । ईश्वर 'अग्र्य' अर्थात् सब में श्रेष्ठ है। संसार के सभी प्राणी, क्या मनुष्य और क्या स्वर्ग के देवता, सभी अज्ञान से ग्रसित हैं, सभी जन्म-मरण आदि की व्याधियों से पीड़ित हैं, सभी को इष्ट-वियोग और अनिष्ट - संयोग के द्वारा उत्पन्न होने वाले दुःख लगे हुए हैं। इन सब प्रकार के दुखों से मुक्त केवल ईश्वर ही है । अतएव ईश्वर अग्रय है - सर्वश्रेष्ठ है । भगवान् 'सार्वीय' है । सब का हित - कल्याण करने वाला सार्वीय कहलाता है । भगवान् वीतरागता और सर्वज्ञता प्राप्त करके पहले सर्वश्रेष्ठ - अग्रय बने, फिर जगत् के कल्याण के लिए बिना किसी प्रकार के भेद भाव के जगत् के जीवों को कल्याण का मार्ग प्रदर्शित किया है। अतएव वह सार्वीय है । भगवान सर्वश्रेष्ठ क्यों है? इस प्रकार का उत्तर सार्वीय विशेषण में निहित है । भगवान् सब का कल्याण करते हैं, इस कारण वह सर्वश्रेष्ठ - अग्र्य हैं । जो सब का हित करता है वही सर्वश्रेष्ठ कहलाता है । भगवान् 'अस्मर' अर्थात् कामविकार से रहित हैं। जो काम - विकार से रहित होता है वही सब का हित कर सकता है। भगवान् 'अनीश' हैं। जिनके ऊपर कोई ईश्वर न हो वह अनीश कहलाते हैं। जो स्वयं बुद्ध हैं, जिन्होंने अपने-आपसे बोध प्राप्त किया है, किसी दूसरे से नहीं, उनके ऊपर दूसरा कोई ईश्वर नहीं है। कई लोग मुक्तात्माओं से भी ऊपर अनादि ईश्वर की सत्ता मानते हैं । यह मान्यता समीचीन नहीं है। वस्तुतः मुक्तात्मा और ईश्वर में भेद नहीं है। जो मुक्तात्मा है वही ईश्वर है और मुक्तात्मा से उच्च कोई सत्ता नहीं है, यह सूचित करने के लिए भगवान् को 'अनीश' विशेषण लगाया गया है। भगवान् 'अनीह' अर्थात् निष्काम हैं । अनीह होने के कारण वे अनीश हैं जो निष्काम होगा उसी पर कोई ईश्वर - स्वामी नहीं हो सकता । जिसमें कामना है उसी पर स्वामी- मालिक हो सकता है। निष्काम पुरुष का स्वामी नहीं हो सकता। क्या बादशाह साधुओं पर आज्ञा चला सकता है? 'नहीं'। क्योंकि साधुओं को धन आदि की कामना नहीं है । जब साधुओं पर भी किसी का हुक्म नहीं चल सकता तो ईश्वर पर कौन हुक्म चला सकता है? अतएव अनीश वही हो सकता है जो अनीह - कामना रहित हो । श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ३

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