Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 12
________________ ।। णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स।। श्रीमद् भगवतीसूत्रम् (पंचमांगम) शास्त्र प्रस्तावना श्रमण भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट समस्त श्रुत द्वादशांगी कहलाता है अर्थात वह बारह अंगों में विभक्त है। श्री भगवतीसूत्र, जिसका दूसरा नाम 'विआहपण्णति' (विवाहप्रज्ञप्ति अथवा व्याख्याप्रज्ञप्ति) भी है, द्वादशांगी में पांचवां अंग है। अन्यान्य अंगों की भांति यह अंग भी श्री सुधर्मा स्वामी द्वारा प्रणीत है। यह अंग अत्यन्त गम्भीर है और शब्द एवं अर्थ की अपेक्षा विस्तृत भी है। अतएव इस अंग के प्रारंभ में अनेक विध मंगलाचरण किये गये हैं। मंगलाचरण के आदि सूत्र इस प्रकार हैं :(1) णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। (2) णमो बंभीए लिवीए। (3) णमो सुअस्स। इन तीन सूत्रों द्वारा मंगलाचरण करके शास्त्र प्रारंभ किया गया है। प्रथम सूत्र में पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। द्वितीय सूत्र में लिपि को नमस्कार किया गया है और तृतीय सूत्र में श्रुत देवता को नमस्कार किया गया है। इस प्रकार इन तीन सूत्रों द्वारा नमस्कार करके शास्त्र आरम्भ किया गया है। प्रस्तुत सूत्र के टीकाकारों ने भी टीका करने से पहले मंगलाचरण किया है। अभयदेव सूरि द्वारा किया हुआ मंगलाचरण इस प्रकार है : सर्वज्ञमीश्वरमनन्तमसंगमय्यं, ... सार्वीयमस्मरमनीशमनीहमिद्धम्। व्याख्यान

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