Book Title: Bhagvati Sutra Part 05 Author(s): Ghevarchand Banthiya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 4
________________ निवेदन सम्पूर्ण जैन आगम साहित्य में भगवती सूत्र विशाल रत्नाकर है, जिसमें विविध रत्न समाये हुए हैं। जिनकी चर्चा प्रश्नोत्तर के माध्यम से इसमें की गई है। प्रस्तुत पंचम भाग में तेरह, चौदह, पन्द्रह, सोलह और सतरहवें शतक का निरूपण हुआ है। प्रत्येक शतक के कितने उद्देशक हैं और उनकी विषय सामग्री क्या है? इसका संक्षेप में यहाँ वर्णन किया गया है - __शतक १३ - तेरहवें शतक में १० उद्देशक हैं, उनमें से पहले उद्देशक में नरक पृथ्वियों का वर्णन किया गया है। दूसरे उद्देशक में देवों सम्बन्धी प्ररूपणा की गई है। तीसरे उद्देशक में नैरयिक जीव सम्बन्धी अनन्तराहारक आदि की प्ररूपणा की गई है। चौथे उद्देशक में पृथ्वीगत वक्तव्यता है। पांचवें उद्देशक में नैरयिक आदि के आहार की प्ररूपणा की गई है। छठे उद्देशक में नैरयिक आदि के उपपात सम्बन्धी कथन किया गया है। सातवें उद्देशक में भाषा आदि का कथन किया गया है। आठवें उद्देशक में कर्म-प्रकृतियों की प्ररूपणा की गई है। नौवें उद्देशक में क्या भावितात्मा अनगार लब्धि-सामर्थ्य से रस्सी से बंधी हुई घड़ली को हाथ में लेकर आकाश में गमन कर सकता है, इत्यादि विषय का कथन किया गया है और दसवें उद्देशक में समुद्घात का प्रतिपादन किया गया है। शतक १४ - चौदहवें शतक में १० उद्देशक हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं - प्रथम उद्देशक का नाम चरम उद्देशक है २. दूसरा ‘उन्माद' उद्देशक है, ३. तीसरा शरीरोद्देशक है ४. चौथा पुद्गलोद्देशक है ५. पाँचवां अग्नि उद्देशक है ६. छठा ‘किमाहारोद्देशक' है, ७. सातवां 'संश्लिष्ट' उदेशक है ८. आठवां अन्तर उद्देशक है ६. नौवां अनगार उद्देशक है और १०. दसवां केवली उद्देशक है। शतक १५ - पन्द्रहवें शतक में गौशालक का वर्णन है। शतक १६ - सोलहवें शतक में १४ उद्देशक हैं। पहले उद्देशक में एरण आदि विषयक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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