Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ सम्पादकीय भगवती-जोड़ का चतुर्थ खंड भगवती सूत्र के चार शतकों का समवाय है । बारहवें से पन्द्रहवें शतक तक चार शतकों में अनेक विषयों का विवेचन किया गया है । बारहवें शतक के दस उद्देशक हैं । इन उद्देशकों की विषय वस्तु का आकलन संग्रहणी गाथा में है। गाथा के माधार पर जयाचार्य ने दो दोहे लिखे हैं संख जयंती श्राविका, पृथ्वी रत्न प्रमाद । पुद्गल प्राणातिपात नों, राहु तणो विधिवाद ॥ लोक नाग सुर वारता, भेद आत्म संपेख । द्वादशमा जे शतक नां, दश उद्देशा देख ॥ प्रथम उद्देशक में शंख-पोखली आदि श्रावकों का प्रसंग वणित है। वे श्रावक श्रावस्ती नगरी में रहते थे। वहां एक बार भगवान महावीर पधारे । लोग देशना सुनने गए । देशना का समय पूरा हो गया । श्रावक अपने घर लौटने लगे। शंख श्रावक ने उनसे कहा-'आज हम सामूहिक भोजन कर पाक्षिक पोषध की आराधना करें।' शंख के निर्देशानुसार सामूहिक भोजन की व्यवस्था हो गई । समय पर प्रायः सभी श्रावक पहुंच गए, पर शंख नहीं पहुंचा। सब लोग शंख की प्रतीक्षा करने लगे। उसके आने में विलम्ब होता देख पोखली धावक ने कहा---'मैं जाता हूं और शंखजी को बुलाकर लाता हूं।' पोखली श्रावक शंख के घर पहुंचा । शंख की पत्नी उत्पला ने उसका अभिवादन किया, स्वागत किया और आने का प्रयोजन पूछा। पोखली ने कहा-'सब श्रावक पहुंच गए। भोजन तैयार हो गया । शंखजी नहीं पहुंचे। मैं उन्हें बुलाने आया हूं।' उत्पला बोली-'वे आज पौषधशाला में साधना कर रहे हैं।' पोखली श्रावक पौषधशाला में शंख से मिला और बोला-'सब लोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप अब तक पहुंचे क्यों नहीं ?' शंख ने उत्तर दिया---आज मैं विशेष साधना में संलग्न हूं। इसलिए आपके साथ नहीं जा सकता और भोजन भी नहीं कर सकता। शंख के मना करने पर पोखली वहां से चलकर प्रतीक्षारत श्रावकों के पास पहुंचा। उसने सबको वस्तु स्थिति की जानकारी दी। उन्होंने भोजन कर सामूहिक रूप में पाक्षिक पोषध की आराधना की। दूसरे दिन सूर्योदय के बाद शंख भगवान् महावीर के दर्शन करने गया। अन्य श्रावक भी वहां आए। भगवान ने प्रवचन किया। प्रवचन सम्पन्न होने पर श्रावक शंख के पास जाकर बोले-'देवानुप्रिय! कल आपने हमारे साथ धोखा क्यों किया? आपको भोजन नहीं करना था, सामूहिक पौषध नहीं करना था तो हमें क्यों कहा? आपके कारण हमें कितना हास्यास्पद बनना पड़ा?' श्रावक शंख को उपालम्भ दे रहे थे, उसी समय भगवान महावीर ने उन्हें प्रतिबोध देते हुए कहा-श्रावको! तुम शंख की अवहेलना मत करो। शंख प्रियधर्मी और दृढ़धर्मी श्रावक है। इसने जागरिका की है । श्रावकों को अपने प्रमाद का बोध हुआ। उन्होंने भगवान् को वंदन-नमस्कार किया। शंख के साथ खमतखामणा किया। कालांतर में शंख श्रावक ने भगवान के पास अनगार धर्म-. मुनि दीक्षा स्वीकार की। जयाचार्य ने भगवती के इस प्रेरक कथानक को 'जोड़' में आबद्ध किया ही है, इसके साथ-साथ कुछ विमर्ष योग्य शब्दों की समीक्षा भी की है। दूसरे उद्देशक में कौशाम्बी नरेश उदयन के परिवार का वर्णन है। उदयन की माता मृगावती एक तत्त्वज्ञ श्राविका थी। उदयन की बुझा जयन्ती भी अच्छी तत्त्वज्ञा थी। साधुओं की प्रथम शय्यातर के रूप में उसकी प्रसिद्धि थी। एक बार भगवान महावीर कौशाम्बी नगरी पधारे। जयंती श्राविका को यह संवाद मिला । उसने प्रसन्न हो अपनी भाभी मृगावती तक यह सूचना पहुंचाई । मृगावती जयन्ती को साथ लेकर भगवान् के दर्शन करने गई। राजा उदयन भी उनके साथ था। भगवान का प्रययन सुन राजा उदयन और महारानी मृगावती घर लौट गई । जयंती के मन में कुछ जिज्ञासाएं थीं। उसने भगवान् की उपासना कर अपनी जिज्ञासाएं प्रस्तुत की। जयन्ती के प्रश्न--- (१) भन्ते ! जीव भारी कैसे होते हैं ? (२) जीव की भव्यता स्वाभाविक है या पारिणामिक ? Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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