Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 19
________________ द्वादश शतक ढाल : २४९ १. व्याख्यातं विविधार्थमेकादशं शतम, अथ तथाविधमेव द्वादशमारभ्यते । (वृ. प. ५५२) २,३ संखे जयंति पुढवि पोग्गल अइवाय राहु लोगे य । नागे य देव आया, बारसमसए दसुद्देसा ।। (श. १२ संगहणी-गाहा) ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नगरी होत्था-वण्णओ। कोटुए चेइए-वण्णओ। ५. तत्थ णं सावत्थीए नगरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासया परिवसंति-अड्ढा । ६. जाव बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव"...."विहरति ।। ७. तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम ___ भारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा । ८. समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव..."विहरइ । १. एकादशमां शतक में, विविध अर्थ अवदात । द्वादशमें पिण तेहिज हिव, कहियै अर्थ सुज्ञात ।। २. संख जयंती श्राविका, पृथ्वी रत्न प्रमाद । पुद्गल प्राणातिपात नों, राह तणो विधिवाद ।। ३. लोक नाग सुर वारता, भेद आत्म संपेख । द्वादशमा जे शतक नां, दश उद्देशा देख ॥ शंख पोक्खली पद ४. तिण काले नै तिण समय, नगरी सावत्थी नाम । कोट्ठग नामे चैत्य थो, वर्णक बिहुं नो ताम ॥ ५. तिण सावत्थी ने विषे, संख प्रमुख बहु जान । समणोपासग संदरू, वस अधिक ऋद्धिवान ॥ ६. यावत अपरिभूत छै, जाण्या जीव अजीव । तावत मुनि प्रतिलाभता, विचरै सखर सदीव ।। ७. वनिता संख तणी सही, नाम उत्पला तास । कर पग तनु सुखमाल है, जाव सरूप उजास ॥ ८. ते पिण' छै सुध श्राविका, जीवाजीव पिछाण । जाव पात्र प्रतिलाभती, विचरै ते गुणखाण ।। ६. नगरी सावत्थी नै विषे, वसै पोक्खली नाम । समणोपासग सुंदरू, अड्ढे ऋद्धिवंत ताम ।। १०. जाण्या जीव अजीव ने, यावत विचरै तेह। जाव शब्द में जाणवू, श्रावक वर्णक जेह ।। ११. तिण काले नैं तिण समय, समवसरया भगवंत । कवण प्रकार थयो तदा, ते सुणज्यो धर खंत ॥ *प्राणी गुणरसियो। जेह सुगुण नर नार तेहनै मन वसियो ।(ध्रुपदं) १२. महावीर जिन आविया रे, गुणिजन ! जावत परिषद जान । प्राणी गुणरसियो। सेव करै साचै मनै रे, गुणिजन ! त्रिहं जोगे शुभ ध्यान । प्राणी गुणरसियो॥ १३. ते बहु श्रावक तिण समे रे, सांभल वीर वृतंत। आलभिया जिम आविया रे, यावत सेव करंत ।। १४. वीर प्रभू तिण अवसरे रे, थावकां मैं सुखकार। महामोटी परिषद विषे रे, धर्म कथा कही सार ॥ १५. 'आण धर्म' ओलखावियो रे, केवली-भाषित तेह । वाण सुणी नै परषदा रे, जाव गई निज गेह ।। *लय : पंखी गुणरसियो ९. तत्थ णं सावत्थीए नगरीए पोक्खली नाम समणो वासए परिवसइ-अड्ढे । १०. अभिगयजीवाजीवे जाव......"विहरइ । (श. १२।१) ११. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । १२. परिसा जाव पज्जुवास इ । १३. तए णं ते समणोवासगा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जहा आलभियाए जाव पज्जुवासंति । १४. तए ण समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ । १५ जाव परिसा पडिगया। (श. १२।२) श० १२, उ०१, ढा०२४९ १ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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