Book Title: Bhagavati Jod 04 Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 24
________________ ७०. श्रावकां प्रति इहविध कहै रे, इम निश्चै सुवदीत । संख पोषधसाला विषे रे, जाव विचरै पोसह सहीत ।। ७१. निज अभिप्राये ते भणी रे, विस्तीर्ण चिहं आर। जाव विचरो छो आस्वादता रे, तसु आज्ञा न लिगार ॥ ७०. ते समणोवासए एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! संखे समणोवास ए पोसहसालाए पोसहिए जाव विहरइ। ७१. तं छंदेणं देवाणुप्पिया! तुब्भे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा जाव (सं० पा०) विहरह। ७२. संखे णं समणोवासए नो हब्वमागच्छइ । ७२. संख श्रावक तिण कारणे रे, शीघ्रपणे करि ताम। आपां कन्है आवै नहीं रे, जीमण ने इण ठाम ।। ७३. ते श्रावक तिण अवसरे रे, विस्तीर्ण चिहं आ'र । आस्वादता विस्वादता रे, यावत विचरै तिवार।। ७४. दोयसौ नै गुणपचासमी रे, आखी ढाल उदार । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे, 'जय-जश' हरष अपार । ७३. तए णं ते समणोवासगा तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा जाब विहरंति । (म० १२।१४) ढाल : २५० दूहा १. संख श्रावक नै तिण समय, मध्य रात्रि रै माय । धर्म जागरणा जागतो जाव उपना ए अध्यवसाय ।। २. मुझ नै निश्चै श्रेय छ, काल थये परभात । यावत जाज्वलमान रवि ऊगतेज विख्यात ।। ३. भगवंत श्री महावीर नैं, वंदन करि शिर नाम । तिहां थी पाछो आयने, पोसह पारिस ताम ।। ४. एहवी करी विचारणा, काले जाव जलंत । पोषधशाला थी तदा, नीलियो गुणवंत ॥ १. तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्ताव रत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे जाव (सं० पा०) समुप्पज्जित्था । २. सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव __उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते ३. समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जु वासित्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तए ४. त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्टियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ । ५. सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ । ५. निर्मल पहिरण जोग्य जे, पवर वस्त्र मंगलीक । पहिरी नै निज घर थकी, नीकलियो तहतीक ॥ ६. 'पोसह कीधा प्रथम जे, राख्यो है आगार । तेह वस्त्र पहिरचा तिणे, इम दीसै ववहार ।। (ज० स०) ७. पग अलवाणे चालतो, नगरी सावत्थी तास । __ मध्योमध्य थई करी, जाव करै पर्युपास ॥ ८. अभिगमण जे पंच छै, ते इहां कहिवा नांहि। . पोसह छै तिण कारण, सचित्त त्याग पहिला हि ॥ *कटुक वचन मति बोलो, सूध वयण व पाटज खोलो जी, बोलो तो पहिली तोलो जी। या राखो मून अमोलो जी कटुक वचन मति बोलो। (ध्रपदं) *पय : झूठ वचन मति बोलो, थारी सत्य जबानज खोलो जी ७. पायविहारचारेणं सावस्थि नगरि मज्झमझेणं जाव (सं० पा०) पज्जुवासति। (श० १२।१५) ८. 'अभिगमो णत्थि' त्ति पंचप्रकारः पूर्वोक्तोऽभिगमो नास्त्यस्य सचित्तादिद्रव्याणां विमोचनीयानामभावादिति । (वृ० ५० ५५५) ६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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