Book Title: Bhagavati Jod 04 Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 14
________________ (१२) १५५ २३९ १५६ १५६ २४४ १५६ १५८ २५० २५३ ~ ~ ~ ~ ~ x rrr..mor ~ xxxxrururururu ~ ~ ~ ~ ~ १६३ २५६ १६४ २५७ २६२ १६७ २६४ १७३ १७५ २६५ २६९ २७१ २७२ १८१ १८२ २७३ २७७ १८४ २८२ १८५ नैरयिक स्पर्शानुभव पद नरक-बाहल्य क्षुद्रत्व पद नरक परिसामन्त पद लोक मध्य पद दिशि विदिशि प्रवह पद लोक पद धर्मास्तिकाय के प्रदेशों की स्पर्शना अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों की स्पर्शना आकाशास्तिकाय के प्रदेशों की स्पर्शना जोवास्तिकाय के प्रदेशों की स्पर्शना पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों की स्पर्शना अद्धा समय के प्रदेशों की स्पर्शना धर्मास्तिकाय आदि की परस्पर स्पर्शना अवगाहना द्वार अन्य प्रकार से अवगाहना द्वार जीवों की अवगाहना द्वार अस्तिकाय प्रदेश निषीदन द्वार बहुसम द्वार संस्थान द्वार नैरयिक आहार पद सांतर-निरंतर पद चमर आवास पद उदायन कथा पद उदायन की धर्म जागरणा वीतिभय में महावीर का आगमन उदायन की दीक्षा की स्वीकृति केशीकुमार का राज्याभिषेक उदायन का अभिनिष्क्रमण अभीचिकुमार का आक्रोश व्रत-विराधना की परिणति भाषा पद मन पद काय पद मरण पद कर्म-प्रकृति पद भावितात्मा विक्रिया पद छाअस्थिक समुद्घात लेश्यानुसारी उपपाद पद नरयिक आदि का गतिविषय पद नैरयिक आदि का अनंतरोपपन्नगादि पद उन्माद पद वृष्टिकाय करण पद २८३ २८४ २८५ १८६ १८६ १८९ तमस्काय करण पद विनयविधि पद पुद्गल जीव परिणाम पद अग्निकाय अतिक्रमण पद प्रत्यनुभव पद देव उल्लंघन पद नैरयिक आदि का आहारादि पद देवेन्द्र-भोग पद गोतम-आश्वासन पद महावीर और गौतम की तुल्यता भावी तुल्यता-परिज्ञान पद तुल्यता पद भक्त प्रत्याख्यात-आहार पद लवसत्तम देव पद अणुत्तरोपपातिक देवपद अबाधा अन्तर पद अम्मड अंतेवासी पद अम्मड चर्या पद अव्याबाध देवशक्ति पद शक्रशक्ति पद जम्भक देव पद सरूपी सकर्म लेश्या पद अत्त-अणत्त पुद्गल पद इष्ट-अनिष्ट आदि पुद्गल पद देवभाषा सहस्र पद सूर्य पद श्रमणों की तेजोलेश्या पद केवली पद गोशालक पद भगवान् विहार पद प्रथम मासखमण पद द्वितीय मासखमण पद तृतीय मासखमण पद चतुर्थ मासखमण पद गोशालक का शिष्य रूप स्वीकरण पद तिल स्तंभ पद वैश्यायन बाल तपस्वी पद तिलस्तंभ-निष्पत्ति और गोशालक-अपक्रमण पद तेजोलेश्या-उत्पत्ति पद गोशालक अमर्ष पद गोशालक भाक्रोश प्रदर्शन पद वल्मीक दृष्टांत पद ~ ~ ~ rxxxvorm". ~ ~ FUTU.०००.०० - ~ . २८७ m x9mm orrm 2 rrrrrrrNNNNNNYrrrrr mmm m m mm mr mr r m mr x2 ० ० xrurr ० ०. r १९२ १९४ १९६ १९८ १९९ ३०६ २०५ २१० २१४ २१५ २२० ३१५ २२५ ३२० २२९ २३२ २३५ ३२१ ३२२ ३२३ ३२३ २३८ Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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