Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 13
________________ वैदिक साहित्य मे उल्लेख का अंभाव यह नियम है कि जो हमे प्राप्त नहीं है न तो हम उस का त्याग कर सकते है और न ही उसको प्राप्त करने को कामना को छोड़ सकते हैं। यह प्राप्ति की इच्छा ही वासना है जो जीवात्मा के संसार-भ्रमण का कारण है। महावीर राजसी वैभव मे उत्पन्न हुए, उन्होने उस वैभव का अन्तिम बार पुनः प्रयोग करके देखा, किन्तु उसे निस्सार पाया, अत निस्सार से असीम विस्तार की ओर वढने को उन्मुक्त इच्छा उनके हृदय मे उभर आई। हृदय जिस वस्तु को निस्सार समझ लेता है वह उसकी वासना से मुक्त हो जाता है और वासना-मुक्त शुद्धात्मा ही विश्वमगल की विराट भावना को लेकर कुछ कर पाने में समर्थ हो सकता है। यही कारण है कि गृह-परित्याग के अनन्तर उन्होने कभी कही पर "राजकुमार हू" यह कह कर अपना परिचय नही दिया। - वैदिक संस्कृति के पुराण ऐतिहासिक सामग्री के विशाल भण्डार हैं, उन पुराणो मे बुद्ध का उल्लेख विष्णु के दश अवतारो के रूप मे हुआ है, परन्तु पुराणो ने भगवान महावीर का कही उल्लेख नही किया। इतना बडा ऐतिहासिक महापुरुष भारत मे विचरण कर रहा हो और उसका पुराणकार उल्लेख न करें इसका कोई न कोई विशेष कारण होना ही चाहिए। मैं समझता हू पुराण-सस्कृति के निर्माता राज्यतन्त्र के प्रवल समर्थक थे, क्योकि राजा ही तो राजसूय अश्वमेव आदि यज्ञो द्वारा उनकी सेवा-पूजा कर रहे थे। भगवान महावीर राजसूय अश्व-मेध आदि हिंसक यज्ञो से जन-मन को मोड रहे थे, अतः विरोध भाव ने उन्हे उपेक्षित कर दिया होगा। • भगवान महावीर का मार्ग निवृत्ति का मार्ग है और वैदिक संस्कृति प्रवृत्ति मार्ग की प्रवल समर्थक है, अतः प्रवृत्ति-प्रधान पुराण उनके निवृत्ति-मार्ग का उल्लेख न कर सके । ____ मैं मानता हूँ कि "उपनिषद्” साहित्य निवृत्ति का पोषक है, परन्तु यह भी तो सत्य है कि वैदिक संस्कृति के मत-मतान्तरो मे कोई भी ऐसा मत नहीं है जो विशुद्ध औपनिषदिक आधार पर प्रवृत्त [ ग्यारह

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