Book Title: Bar Bhavna Sazzaya Author(s): Jayanti Kothari Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसंधान - १७•145 नूटक दीपतु त्रिभुवनमांहि कंटक, खाटि बांध्या नव ग्रहे, विहि दलइ कोद्रव, अग्नि धोइ वस्त्र, वायु बाहारइ ग्रहे, यम वहइ जस घरि नीर निरमल, छए रितु नितु वनि वसई, एक हाथि पर्वत जेणि तोल्यु, भुवनि भुजबल उहलसर, ते नित्य न रहिउ भूप रावण, मुंज भोज गया सही, तु अधिर काया मूढ माया, अनित्य भावन ए कही. ७ बाहुबलिनी वेलिनी ढाल अशरण बीजी भावना, शरण नहीं जगि कोइ जी, मातपिता बांधव वली, हय गय पावक जोय जी. नूटक नहीं शरण मरण जनम रोगिईं, सुजन, राणिम रिंधि छतां, रिषि अनाथी थयु सनाथी, एह भावन भावतां, एक धर्म अशरण-शरण परभवि, सुजन, संबल आदरु, ए धरु भावन चित्ति पावन, अलवि भवसायर तरु. ८ ढाल एकवीसानी आविउ आविउ रे संसारिइं जीव एकलु, वली प्राणी रे पाप करी ज[जा] सइ एकलु, को कहिनु रे नहीं संघाती जाणीं, कुण वइरी रे बंधव कवण वखाणीइ. नूटक वखाणीइ कुण स्वार्थि वाहालां, मिलइ सज्जन अतिघणां, जे विना न सरइ एक घडली, जनम जाइ ते विना, कुटंब कारणि पापभारइ जीव वेइ एकलु, एकत्वभावन भावतां नमिराय बूझिउ गुणनिलु. ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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