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जयवंतसूरिकृत बार भावना सज्झाय
. - संपा. जयंत कोठारी
कविपरिचय जयवंतसूरि (अपरनाम गुणसौभाग्यसूरि)ए वडतपगच्छनी स्नाकर शाखाना उपाध्याय विनयमंडनना शिष्य हता. एमनी बे रासकृतिओ 'शृंगारमंजरी' अने 'ऋषिदत्ता रास' अनुक्रमे १५५८(वि.सं.१६१४) अने १५८७(वि.सं. १६४३)नां रचनावर्षो बतावे छे अने १५९६(वि.सं.१६५२)मा एमणे 'काव्यप्रकाश नी टीकानी हस्तप्रत लखावीने ज्ञानभंडारमा मुकाव्यानी माहिती मळे छे एटले कविनो समय सोळमी सदीनो गणाय - सोळमी सदीना बीजा चरणथी कदाच सत्तरमी सदीनां थोडां वर्षों सुधीनो. ___ जयवंतसूरिने नामे बे रासकृतिओ उपरांत स्तवन, लेख(पत्र), संवाद, फाग, बारमासा वगेरे प्रकारनी कृतिओ अने ८० जेटलां गीतो मळे छे. अनेकविध भावछटाओ अने अभिव्यक्तितराहोथी ओपती एमनी काव्यसृष्टि एमनी विदग्धता अने एमना उच्च कवित्वनी प्रतीति करावे छे. (विशेष माटे जुओ मध्यकालीन गुजराती जैन साहित्य, संया. जयंत कोठारी, कांतिभाई बी. शाह, १९९३ तथा कविलोकमां, जयंत कोठारी, १९९४ - 'पंडित, रसज्ञ अने सर्जक कवि जयवंतसूरि' ए लेख.)
कृतिपरिचय 'बार भावना सज्झाय' ढाळ अने त्रोटकना पद्यबंधमां रचायेली ३९ कडीनी रचना छे. ३९ कडी कहेवाथी समजाय एना करतां एनुं परिमाण मोटुं छे केमके पंदरेक कडीओ ढाळ अने त्रोटकना विभागो धरावे छे अने ६थी ८ पंक्ति सुधी विस्तरे छे. बेएक अन्य कडीओ पण चार पंक्ति सुधी विस्तरे छे. ढाळ अने त्रोटकना विभागो वच्चे शब्दसांकळी छे. कृतिनो विशिष्ट पद्यबंध अने त्रोटकना प्रयोगथी आवती गानछटा ध्यानार्ह छे.
आ कृति जयवंतसूरिनी एकमात्र एवी कृति छे जे संपूर्णपणे सांप्रदायिक
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अनुसंधान-१७ • 143 विषयवस्तुनी छे अने जेमा एमना कवित्वने विलसवानो खास कशो अवकाश मळ्यो नथी. (थोडां गीतो पण आवां मळे छे खरां.) कृतिमां जैन परंपरामां खूब जाणीती, मोक्षमार्गना साधनरूप बार भावनाओ वर्णवायेली छे. भावना एटले जेनुं चिंतन-पर्यालोचन करवू जोईए एवा तात्त्विक पदार्थो - देहादिनी अनित्यता वगेरे. अनित्यभावनाने संदर्भ रावणनां समृद्धि अने प्रतापर्नु तथा संसारनी - भवभ्रमणनी असारताने संदर्भ नरकनां दुःखोनुं वीगते वर्णन दाखल थयुं छे, परंतु आ वर्णनो केवळ परंपरागत छे. तत्त्वविचारना निरूपणमां अभिव्यक्तिनी कशी ताजगी के नूतनता आणवानुं कविए इच्छ्युं नथी.
प्रतपरिचय आ कृतिनी ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनी क्र. ६६८०नी एकमात्र प्रत मळी छे. बीजी कोई प्रत जाणवा मळी नथी. प्रतनां चार पत्र छे. पत्र- माप २१x१० से. मि. छे. पत्रनी दरेक बाजुए १३ लीटी छे. छेल्ला पत्रनी बीजी बाजुए चार लीटी छे. दरेक लीटीमां आशरे ३७ अक्षर छे. प्रतना अक्षर मोटा, चोख्खा अने सुघड छे. प्रत घणी शुद्ध रीते लखायेली छे. पडिमात्रानो उपयोग थयो छे अने 'ख'ने माटे 'ष' वपरायो छे. लहियानुं नाम नथी, लेखनसंवत पण नथी, पण प्रत संवत सत्तरमी सदीनी ज होवानुं अनुमान थई शके छे.
बार भावना सज्झाय
पुरीयां मनिहिं विमासइ - ए दाल सरसति सरस ति वाणी, आपु अमीअ समाणी, भावन बार वखाणी, बूझवें भवीअण प्राणी. १ दुर्लभ मानव-जंवारु, भवीअण, ए लही सारु, भोलिमि, भोलडा, म हारु, आप-सवारथ सारु. २ माया ममता ऊतारु, मन 'उनमारगि वारु, वाणी-अमी अवधारु, भावन बार संभारु. ३ भावन मुगति-निधान, श्रीजिनशासनि प्रधान, ते सुण थई सावधान, छंडी कुमत अज्ञान. ४
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अनुसंधान - १७• 144
शासनदेवी-पय पणमेवीअ
भवीअण प्राणीअ, भावन आणीअ, पहिलीअ अनित्यता भाविवी ए
जगि जि सुहुणडा समवडि, साजन, घडीअ नव हिंडतां जाणिवी ए. नूटक जाणीवी माया मायताया, अथिर काया ए सही, ए मित्र पुत्र कलत्र भाई, थिर सगाई को नहीं, यौवन्न मातु विषयि रातु, फोक ममता वाहीइ, जे जीव पाहिं सुजन वाहाला, नेहि छेहु ते दीइ. ५ जोअण लंक शत अधिक चुरासीअ,
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ऊंचमि गाउ सत गढ रखइ ए
त्रणि सहिस चुपन पोलि स-बारीअ, शत दुर्नि कोठडा एक लख ए. नूटक
एक लक्ष त्र्यासी सहिस कोठा, बुरुज छप्पन हवि सुणु,
चु कोडि लख उगणच्यालीस कोडी, सहिस चु कोडि शत भणउ,
त्रिपन्न कोडी लक्ष बारे सहिस पंचास कोसीस ए
चु सहिस छणुं सुभट सूरा, कोसीसइ एक निवसए, इम सर्व संख्या सुभट कहीइ, अढार कोडाकोडि शती, सोविन गढ दृढ जलधि खाई, लंकनगरी जसवती. ६ रावण भूपति, लंकनु अधिपति,
ए ढाल
एक लख पंचवीस, सहिस सुत बत्रीस,
सुरपति जस सुति जीपीउ ए.
जोअण परिषदि दीपतु ए.
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अनुसंधान - १७•145
नूटक
दीपतु त्रिभुवनमांहि कंटक, खाटि बांध्या नव ग्रहे, विहि दलइ कोद्रव, अग्नि धोइ वस्त्र, वायु बाहारइ ग्रहे,
यम वहइ जस घरि नीर निरमल, छए रितु नितु वनि वसई, एक हाथि पर्वत जेणि तोल्यु, भुवनि भुजबल उहलसर, ते नित्य न रहिउ भूप रावण, मुंज भोज गया सही, तु अधिर काया मूढ माया, अनित्य भावन ए कही. ७ बाहुबलिनी वेलिनी ढाल
अशरण बीजी भावना, शरण नहीं जगि कोइ जी, मातपिता बांधव वली, हय गय पावक जोय जी.
नूटक
नहीं शरण मरण जनम रोगिईं, सुजन, राणिम रिंधि छतां, रिषि अनाथी थयु सनाथी, एह भावन भावतां,
एक धर्म अशरण-शरण परभवि, सुजन, संबल आदरु, ए धरु भावन चित्ति पावन, अलवि भवसायर तरु. ८ ढाल एकवीसानी
आविउ आविउ रे संसारिइं जीव एकलु,
वली प्राणी रे पाप करी ज[जा] सइ एकलु, को कहिनु रे नहीं संघाती जाणीं, कुण वइरी रे बंधव
कवण वखाणीइ.
नूटक
वखाणीइ कुण स्वार्थि वाहालां, मिलइ सज्जन अतिघणां, जे विना न सरइ एक घडली, जनम जाइ ते विना, कुटंब कारणि पापभारइ जीव वेइ एकलु, एकत्वभावन भावतां नमिराय बूझिउ गुणनिलु. ९
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अनुसंधान - १७ • 146
ए ढाल
कोइ वारु रे मेघरथ राय चुथी भावन भावीइ, अन्य सहू जगमाहिं रे, तनु धन सुजन अनेरडा, परलोकई रे नहीं कोई सहाय कि. १० भवी अणजी, इम भावु रे, जिम पामु रे मुगतिनिवास,
जिणि छूट रे भवभयपास. आंचली जनमि जनमि पाम्यां घणां मातपिता सुत भाई रे, तरूअरथी जिम जूजूआं प्रहि ऊगई रे पंखीडां सवि थाय कि.
११ भ०
एई संसारि संयोगडा, सुहुणा सरिसा जाणि रे, अति संयोगवियोगनई मनि माया रे अलीअम आणि कि.
घडीअ न लागइ वहिडतां, जिम कातीना मेह रे, तनु धन सुजन अनेरडां, ते साथ रे मंडि म चितसनेह कि.
१३ भ०
अन्यत्यभावन भावतां, सनतकुमार वइरागी रे, घर पुर अंतेउर त्यज्यां इम मेहलु रे ममतानु तुहमे भाग कि.
१४ भ०
१२ भ०
एक दिन सारथपति भगइ
अपार, रे. १५
भावन भावु पंचमी, ए संसार असार, चु गइ मांहिं भमंतडां, सुखदुख सह्यां भावन भावीइ, आणी आणी हियाइ विरागो रे, साधु मुगतिनु मागो रे, छंडी छंडी भव तणउ रागो रे.
बूझउ बूझउ प्राणीआ, परिहरी ममता नइ मोहो रेत,
मंडु मंडु धरम- स्युं नेहो रे, जाणी जाणी अथिर स देहो रे. भा०
ए ढाल
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अनुसंधान-१७. 147 निरया गति अति जीवडु, वेइ दुख असाय, संकड कुंभी ऊपनु, तलि शिर ऊपरि पायो रे. १६ पीडइ पाप पचारतां, परमाधामी अपार, सांडसइ त्रोडइ, तेलि तलइ, दिइ वली मोगर-प्रहारो रे. १७ भा० पारानी परि वली मिलिइ, कीध स खंडोखंडि, सुख एक मेषोन्मेष नहीं, नवि मेहलइ टलवलतां रे. १८ भा० झडपइ आमिष पिंडनई, समलीरूप करेवि, चांच जिसी हुइ भालडी, तन वींधइ ततखेवो रे. वज्रमुखरूपी कंथूआ, वेदन करइ शरीर, माहोमांहिं आयुधि हणइ, मुखि मुंकइ अति रीरो रे. माहा माझिम निसि जल वडइ, छांटी वीजइ रे वाय,
अनंत गुणी शीत-वेदना, तेहथी नरकि सहायो रे. तावडि तापिउ टलवलइ, वंछि वनतरु वाय, सामलि असिवनि राखीउ, ते दुख मिइं न कहायो रे. २२ भा० करवतधारा पानडां, पडि पडि खंडइ देह, समलीरूपई ठणक दिइ, ते दुखनु नहीं छेहो रे. २३ भा० भार भरी ऊतारीइ, वइतरणीनइ मांहि, मत्स्य भखइ वली देह गलइ, पगि गोखरू वींधायो रे. २४ भा० अगनिवर्ण करी पूतली, दिइ आलिंगन देहि, तातां तरूआं पाईइ, कही न सकुं दुख एहो रे. २५ भा० दसविध वेदनदुख सह्यां, जे मिई नरक मझारि, कोडि जीभ कहइ केवली, तुहि न आवइ पारो रे. इम तिरीआं गति मानवी, देठ तणी गति माहिं, परि परि जे दुख मि सह्यां, ते वली कह्यां न जायो रे. २७ इम भवभावन भावतां, जे विरमइ संसारि, ते पुष्पचूलानी परइं, पामइ पामइ भव तणउ पारो रे. २८ भा०
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अनुसंधान - १७ • 148
ढाल
अस्थिर काया हो प्राणी ए खरी, वह नव द्वारई हो मलमूत्रई भरी.
नूटक मलमूत्रि भारी, अतिअ सारी, रुधिर वीर्य थकी घडी, आहार - जल मल-मूत्र थाइ, शुचि न थाइ देहडी, वाधी अमा मुख अशुचि अन्नई, नुहि किमहिझं निर्मली, ए अशुचि साते धाति बांधी, ऊपरि चरमह कोथली. आभरण सोहइ सहु मोहइ, अशुचिभावन भावतां, श्रीभरत भूपति लहिउं केवल, आरीसइ मुख जोयतां. सिरि संति जिणेसर ए ढाल
हवि सातमि भावन, लोकसरूप अपार,
एक पुण्यसंयोगई, सुख वेइ सुरलोकि,
सुर नर पातालई, त्रिभुवन तणउ रे विचार
एक थाइ माता वली वनिता, तात सुत वली सुत पिता, कुबेरदत्त कुबेरदत्ता, कुबेरसेना अति मता, ए लोकभावन जीवभावन, जेह ध्याइ एकमनां, वैराग्यरंगई चित्त चंगई, नुहि भवभय आसना. जय जगगुरुनी ढाल
अट्ठमि भावन भावतां, मनि आश्रव रूंधु,
एक मानवनी गति, नरकि सहइ दुख एक. नूटक
वइरी विषयादिक सबल, ते चित्ति म बंधु.
राग रोस परिहरु दूरि, हिंसादिक टालु,
२९
३०
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अनुसंधान - १७• 149
आश्रव - परवसिपणइ दुःख, मृगापुत्र संभालु. एक मोकलडइ छिद्रि जिम, प्रवहण बूडइ तोइ,
तिम आश्रवथी प्राणीउ, भवसायरि बूडेइ. ढाल वेलिनी
नुमी भावन भावतां, आश्रव तिजउ सदैव, मन वचने काया करी, संवर करि रे जीव.
नूटक संवर कर रे जीव संसारि, विषयादिक वली वारि, क्रोध क्षमाई मान जि विनयई, माया सरलाई वारि, लोभ संतोषई टाली, चारित्र पाली जिनवर आण, संवर आणी प्रसन्नचंद्रादिक पुहुता मुगति निदानि.
ढाल
दशमीय दशमीय भावन भावीइ ए
निरजरा निरजरा तपह प्रमाणि कि,
बाह्य अभ्यंतर बि परई ए.
अणसण ऊणोदरीअ वखाणि कि. लूटक
अणसण ऊणोदरी जाणी, वृत्तिसंखेप संलीनता, रसत्याग कायाक्लेश बाहिरि - भेद छ ए गुणवता, प्रायश्चित्त कासग ध्यान विनई, वैयावृत्य सझाय- स्युं, ए भेद आभ्यंतरिक, निर्जर भावि भावन भाव- - स्युं. गुरु गिरुआ गुणसागर ए ढाल
उत्तम भावन भावतां, उत्तम गुण संभारि, चारित्र निरमल आदरी, पुहुता मुगति मझारि
३३
३१
३२
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अनुसंधान - १७•150
नारीनइ बूडा नही, तारू हूआ तारुन्नि,
इंद्रिय-हय जीपी करी, आणी निजवसि मन्त्र. जंबूकुमर तणी परि छंडी सोविन नारि, आप सवारथ साधीअ, जे रह्या सिद्धिदूआरि उत्तम भावन भावतां, प्राणी तर संसारि, जनम-जरा- भवभय थकी, पामइ ते नर पार
ए ढाल
गिरिवर मांहिं मेरु वडु रे बोधिभावन हवि भावीइ रे, दुर्लभ ते जगि होइ, चक्रवतिपदवी सोहिली रे, सोहिलां सुरसुख होइ.
~
३४
नूटक
सोहिलां सुरसुख होइ, प्राणी, लक्ष वार स पामीर, एक धर्म दोहिलु वली भवि संसारमांहिं अनंत पुद्गलपरावत्ति भवि भमइ,
मिथ्यात्व मोहिउ, पाप वाहिउ, धर्म-अक्षर नवि गमइ ३६ [ ढाल]
जिम नइ पाहाण तणी परिई रे, यथाप्रवृतिकरणेण, कोडाकोडि एक थाकतां रे, आठइ करम तणेण.
३५
भवि दुःख जेहथी वामी,
नूटक आठइ कर्म तणी गति, कोडाकोडि एकेकी जव रहइ, ए चौद अंतरग्रंथि भेदक समय जिनवर तव कहइ, जे रागदोषप्रणाम[ प्रमाण ] सरूपी ग्रंथि ते अणभेदतइ,
नवि लहइ प्राणी शुद्ध समकित ग्रंथि दृढ पोतइ छतइ ३७ [ ढाल]
पर्वतनी परि भेदवा रे, को लघुकरमी होइ, भेदइ अपूरवकरणडइ रे, अनिवृतिकरण स जोड़.
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अनुसंधान - १७• 151
नूटक
अनिवृतिकरणि स जोई प्राणी, सूझतु खिणि खिणि घणडं, उदीर्ण मिच्छतक्षई घाती, अनुदीर्ण उपशमावी घणउं, इम लहइ समकित पंच भेदिई, क्षायिकादिक अति भलां, दस भेद वली निसर्ग आदिक लहइ प्राणी निर्मलां. ३८ [ ढाल]
बोधिभावन बारमी ए, भावइ जेह महंत,
ते नर निरमल संपजइ रे, पामइ सुक्ख अनंत.
चूटक पामइ सुक्ख अनतं प्राणी, भावन बार वखाणी, एकमनां जे भावन भावइ, ते सुख आणइ ताणी,
वड तपछि अति महिमामंदिर, श्रीविनयमंडन उवझाय,
तस सीस जयवंत पंडित वीनवइ, सुखसंपद थिर थाइ ३९ इति श्री १२ भावना सज्झाय समाप्तः, श्री. श्री. श्री. श्री.
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अनुसंधान-१७ • 152
शब्दार्थ (मध्यकालीन अने केटलाक पारिभाषिक शब्दोनो समावेश को छे. कडी अने पंक्तिक्रमांकनो निर्देश छे.) . अगनिवर्ण २५.१ अग्निना वर्णनें, रातुंचोळ, तपेखें अट्ठमि ३१.१ आठमी (सं.अष्टमी) अथिर ७.१० अस्थिर अनिवृत्तिकरण ३८.२ अपूर्वकरणरूप परिणाम पाछु जाय नहीं तेवी अवस्था
(सं.अनिवृत्तिकरण) अनुदीर्ण ३८.४ उदय न पामेल अथवा जेनो उदय दूर छे ते (सं.) अनेरडां १३.२ जुदेरां (सं.अन्यतर) अपूरवकरणडउ ३८.२ पूर्वे क्यारेय प्राप्त न थयेला एवा आत्माना शुभ
परिणामनी प्राप्ति (सं.अपूर्वकरण) अमा २९.५ अमाप, खूब (सं.) अमीय १.१ अमृत अलवि ८.६ सहेजमां, अनायासे अलीय १२.२ मिथ्या, खोटुं (सं.अलीक) असाय १६.४ अशातावेदनीय कर्मनो एक प्रकार, शारीरिक-मानसिक पीडा असिवन २२.२ तरवारना आकारनां पांदडांवाळां वृक्षोनुं वन (सं.) अंतेउर १४.२ अंत:पुर, राणीवास, राणीओ आदर- ८.५ स्वीकारवू, आश्रय लेवो (सं.आ+दृ) आप २.२ आत्मा आमिष १९.१ मांस (सं.) आरीसइ २९.२ अरीसामां (सं.आदर्श) आश्रव ३१.१ जे द्वारा कर्मो आवे छे ते, कर्मबंधनां कारण (सं.)
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अनुसंधान-१७. 153 आसना ३०.८ पासे रहेला (सं.आसन्न) उदीर्ण ३८.४ उदय पामेल (सं.) उन्मारग ३.१ अवळो - खोटो मार्ग उपशमाव- ३८.४ शांत कर उवझाय ३९.५ उपाध्याय, जैन साधुनी एक पदवी उह्नस- ७.८ शोभq, प्रकाशq (सं.उल्लस्) ऊंचम ६.२ ऊंचाई (सं.उच्च परथी) एकमनां ३९.४ एक चित्ते करणेण ३१.१ करवाथी (सं.) कवण ९.४ कोण (सं.कः पुनः) कहि ९.३ कोई कंथूआ २०.१ एक नानकडं जीवडुं (सं.कुंथु) काती १३.१ कारतक महिनो (सं.कार्तिक) . कासग ३३.७ काउसग्ग, देहथी पर थर्बु ते, एक जैन ध्यानक्रिया
(सं.कार्योत्सर्ग) किमहिइं २९.५ केमेय कुंभी १६.६ घडाना आकारनी नाना कोटडी, जेमां नरकना जीवोने पकववामां
आवे छे (सं.) कोडाकोडि ३७.२ करोडने करोडथी गुणवाथी थती संख्या कोडि, कोडी ६.६, ८ करोड (सं.कोटि) कोद्रव ७.६ कोदरा, एक हलकुं धान्य (सं.) कोसीस ६.७ कोसीसां, कोटनां कांगरां (सं.कपिशीर्षक) क्षई ३८.४ क्षयथी, नाशथी क्षायिक ३८.५ कर्मनाशथी उत्पन्न थयेल, सम्यक्त्वनो एक प्रकार (सं.)
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अनुसंधान-१७. 154 खंड- २३.१ टुकडा करवा (सं.) खंडोखंडि १८.१ टुकडेटुकडा खिण ३८.३ क्षण गइ १५.२ गति, जीवयोनि गय ८.२ गज, हाथी ग्रह ७.६ गृह, घर घडली ९.६ घडी, चोवीस मिनिटनो समय, अल्प समय (सं.घटिका) घाती ३८.४ आत्माना गुणोनो नाश करनार (सं.) चिंत १३.२ चित्त चु ६.६ चार (सं.चतुः) चुमन ६.३ चोपन (सं.चतुःपंचाशत्) छतइ ३७.६ होतां छंड- १६.२ छांड, छोडवू (सं.छर्द) जव ३७.३ ज्यारे जंवारु २.१ जन्मारो (सं.जन्म+कार के वार) जीप- ७.२ जीतq (सं.जि-, प्रा.जित्त, जिप्प) जूजूआं ११.२ जुदां, अळगां जोअण ७.४ जोजन, तेर किलोमिटर जेटलुं अंतर (सं.योजन) ठणक २३.२ चांचनो प्रहार, भोंकवू ते ततखेव(वो) १९.२ तत्क्षण, तरत ज (सं.तत्+क्षिप्) तरूआं २५.२ कलाई, टीन (सं.त्रपुक) तव ३७.४ त्यारे तस ३९.६ तेनुं (सं.तस्य) तातां २५.२ तप्त, तपेलां
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ताय ५.५ तात पिता
तावड २२.१ ताप
तिज - ३२.१ तजवुं (सं. त्यज्)
तिरी २७.१ तिर्यंच, पशुपंत्री जीवजंतु आदि प्राणीवर्ग
अनुसंधान - १७• 155
तुहि २६.२ तोपण
तोइ ३१.५ पाणीमां (सं.तोय)
त्रिपत्र ६.७ त्रेपन (सं.त्रिपंचाशत् )
थाकतां ३७.३ बाकी रहेतां, बचतां
थिर ३९.६ स्थिर
दुर्नि ६.४ बमणुं, बे
दूआर ३५.२ द्वार
देठ २७.१ घृणित, नारकी ? (सं.द्विष्ट ? )
दोष ३७.५ द्वेष (प्रा.)
दोहिल ३६.४ कर के मेळववुं मुश्केल (सं. दु:ख + इल्ल)
नइ २४.१, ३४.४, ३७.१ नदी
निरजरा ३३.२ कर्मो खरी जवां ते, कर्मोनो नाश थवो ते (सं. निर्जरा)
निरया १६.५ नारकी, नरकनी (प्रा. निरय)
निलु ९.८ निवास, वासस्थान (सं. निलय)
निसर्ग ३८.६ स्वाभाविकपणे थवुं ते, सम्यक्त्वनो एक प्रकार (सं.) नुमी ३२.१ नवमी
नुहि २९.५ न होय
नेटि ५.८ नक्की, जरूर
पचार- १७.१ महेणां मारवां, टोणां मारवां, ठपको आपको (अप. पच्चार) परमा धामी १७.१ नरकवासीओने शिक्षा करनार देवयोनि (सं. परम+
- अधार्मिक)
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अनुसंधान-१७. 156 परि १८.१ पेठे, जेम (सं.प्रकारे) पंचास ६.७ पचास (सं.पंचाशत्) पाय(यो) १६.६ पाक, अग्निथी पकवq ते पायक ८.२ पगपाळा सैनिक पास ११.आंचली पाश, बंधन पाहाण ३७.१ पथ्थर (सं.पाषाण) पाहिं ५.८ -ना करतां (सं.पार्वे) पुद्गलपरावर्त्त ३६.५ जीव बधां कर्मपुद्गलोने स्पर्शी रहे तेटलो काळ, काळर्नु
एक मोटुं माप (सं.) पुहुता ३२.६ पहोंच्या (सं.प्रभूत, प्रा.पहुत्त) पोत ३७.६ भंडार, सिलक पोलि ६.३ दरवाजो (सं.प्रतोलि) प्रमाण ३७.५ परिमाण, जथ्थो (सं.) प्रवहण ३१.५ वहाण (सं.) प्रह ११.२ प्रभात, सवार बंध- ३१.२ बांधवू, जोडवू (सं.बध्) । बाहार- ७.६ वाळवू, झाडु काढवू (दे.बोहारी परथी) बाहारि ३३.६ बहारनो, बाह्य (सं.बहिर) बुरुज ६.५ बुरज, किल्लाने मथाळे तोप गोठववा माटेर्नु अगाशी जेवू
. गोळाकार बांधकाम (अ.बुर्ज) बूझ- ९.८ समजवू, ज्ञान पामकुं समजावq, ज्ञान आपq, बोध करवो
(सं. बुध्य-) बोधि ३६.१ आत्मज्ञान, सम्यग्दर्शन भख- २४.२ भक्ष करवो, खावू
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अनुसंधान-१७. 157 भवीअण १.२ भविजन, मोक्षनो अधिकारी जीव भल्लडी १९.२ नानो भालो (सं.भल्ल) भाव- ५.१ चिंतन कर (सं.भावय) भावन १.२ चिंतन, पर्यालोचन, तेना विषयरूप तत्त्वसिद्धांत (सं.) भोलिम २.२ भोळपण (दे.भोलउ परथी) मझारि १६.१ मध्ये, -मां (सं.मध्य+कार) महंत ३९.१ उत्तम, श्रेष्ठ, मोटुं (सं.महान्त) माग १६.२ मार्ग, रस्तो माझिम २१.१ मध्य (सं.मध्यम) माय ५.३ माता माया ३२.३ कपट (सं.) माहा २१.१ महा महिनो (सं.माघ) मिच्छत ३८.४ मिथ्यात्व, सत्य तत्त्व पर अश्रद्धा मिल १८.१ मेळवq, मिश्रित कर, मसळh ? (सं.) मेषोन्मेष १८.२ आंखना पलकारा मोकलडउ ३१.५ मोकळं, खुल्लु (सं.मुक्त, दे.मोकल्ल) मोगर १७.२ हथोडाना प्रकार- एक शस्त्र (सं.मुद्गर) यथाप्रवृतिकरण ३७.१ अनादिथी चालती प्रवृत्ति तेमनी तेम रहीने जीवमां
शुभ परिणाम प्रवर्तवं ते राणिम ८.३ राजत्व, राजपद रितु ७.७ ऋतु रिषि ८.४ ऋषि रीर(रो) २०.२ चीस, आनंद लघुकरमी ३८.१ थोडां कर्म बाकी रह्यां छे तेवो जीव
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अनुसंधान-१७ 0 158 लह- २९.८ मेळव, पामवृं वखाण- ९.४ कहेवू (सं.व्याख्यान परथी) वहिड- १३.१ विघटित थर्बु, नष्ट थर्बु वाम- ३६.४ दूर करवू (सं.वामय्) वाह- ५.७ वहन करवू; ३६.६ खेंचवं, खेंचावू (सं.वाहय्) विनई ३३.७ विनय, गुणवानोनुं बहुमान विहि ७.६ विधि, विधाता वृत्तिसंखेप ३३.५ खावं, पीयूँ वगेरे भोगो ओछा करता जवा ते (सं.
वृत्तिसंक्षेप) वे- ९.७, ३०.३ अनुभव, भोगवq (सं.वेद्) वैयावृत्य ३३.७ सेवा, शुश्रूषा (सं.वैयावृत्त्य) सझाय ३३.७ स्वाध्याय, धर्मचिंतन स-बारीअ ६.३ द्वार - बारणां साथे ? समकित ३७.६ सम्यक्त्व, सत्य तत्त्व पर श्रद्धा सरल ३२.३ निष्कपट (स्वभाव) सरसति १.१ सरस्वती सरिसा १२.१ सरखा, जेवा (सं.सदृश) सरूप ३०.१ स्वरूप सहिस ६.४ सहस्र, हजार संकड १६.६ सांकडु (सं.संकट) संघाती ९.३ संगाथी, साथी (सं.) संपज- ३९.२ नीपजवं, थर्बु (सं.संपद्य-) संबल ८.५ भाथु (सं.शंबल) संलीनता ३३.५ शरीर अने इन्द्रियोनुं संगोपन, पोतामां रोकावं ते (सं.)
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________________ अनुसंधान-१७. 159 संवर 32.2 कर्मो आवतां - कर्मबंध थता अटकाववा ते सामल 23.2 श्यामल, काळु सायर 31.6 सागर सार- 2.2 सिद्ध करवू, साधq सुक्ख 39.2 सुख सुजन 10.2 स्वजन सुरपति 7.2 इन्द्र (सं.) सुहुणडा, सुहुणा 5.3, 12.1 स्वप्न, सोणां सूझ- 38.3 शुद्ध थर्बु (सं.शुध्य-) सोहिली 36.3 सहेली, सरळताथी प्राप्त (सं.सुख+इल्ल) सोविन 35.1 सुवर्ण सोवित्र 6.10 सुवर्णतुं (सं.सौवर्ण) स्युं 33.7 साथे, वडे (सं.समम्) हय 34.4 घोडो (सं.)